Friday, November 8, 2019

न तू आया, न याद आयी तेरी इक लंबे अरसे से

है जो कुछ पास अपने सब लिए सरकार बैठे हैं 
जो चाहें आप ले जाएं सरे-बाज़ार बैठे हैं 

मनाओ जश्न मंज़िल पर पहुंच जाने का तुम लेकिन 
ख़बर उनकी भी लो यारों जो हिम्मत हार बैठे हैं 

तू अब उस शहर भी जाकर सुकूं पाएगा क्या आख़िर
वहां भी कौन-से ऐ दिल तेरे ग़मख़्वार बैठे हैं 

न तू आया, न याद आयी तेरी इक लंबे अरसे से 
हज़ारों काम होने पर भी हम बेकार बैठे हैं 

उन्हीं से नाम है तेरा, न भूल इतना तो ऐ साक़ी 
तेरे मैख़ाने में अब भी कुछ-इक खुद्दार बैठे हैं 
गए वो वक़्त कहते थे कि इतने दोस्त हैं अपने 
मुक़द्दर जानिए अच्छा अगर दो-चार बैठे हैं 

किसी भी वक़्त आ सकता है अब पैग़ाम बस उसका 
सुना जिस वक़्त से हमने 'दोस्त ' तैयार बैठे हैं 

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