कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना,
हमें भी याद है आज तक वो नज़र से हर्फ-ए-सलाम लिखना!
वो चांद चेहरे वो बहकी बातें सुलगते दिन थे महकती रातें,
वो छोटे छोटे से काग़ज़ों पे मोहब्बतों के पयाम लिखना!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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