Sunday, April 19, 2020

दिल रखते हैं दिल में कोई अरमां नहीं रखते

आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायां नहीं रखते
हम दिल की तरह गिरेबां नहीं रखते

सर रखते हैं सर में नहीं सौदा-ए-मोहब्बत
दिल रखते हैं दिल में कोई अरमां नहीं रखते

नफ़रत है कुछ ऐसी उन्हें आशुफ़्ता-सरों से
अपनी भी वो ज़ुल्फों को परेशां नहीं रखते

रखने को तो रखते हैं ख़बर सारे जहां की
इक मेरे ही दिल की वो ख़बर हां नहीं रखते

घर कर गईं दिल में वो मोहब्बत की निगाहें
उन तीरों का जख़्मी हूं जो पैकां नहीं रखते

दिल दे कोई तुम को तो किस उम्मीद पर अब दे
तुम दिल तो किसी का भी मेरी जां नहीं रखते

रहता है निगह-बान मेरा उन का तसव्वुर
वो मुझ को अकेला शब-ए-हिज्रां नहीं रखते

दुश्मन तो बहुत हज़रत-ए-नासेह हैं हमारे
हां दोस्त कोई आप सा नादां नहीं रखते

दिल हो जो परेशान तो दम भर भी ने ठहरे
कुछ बांध के तो गेसू-ए-पेचां नहीं रखते

गो और भी आशिक़ हैं ज़माने में बहुत से
‘बे-ख़ुद की तरह इश्क़ को पिन्हां नहीं रखते

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