Saturday, April 25, 2020

उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या

जिक्र था जिस्म की जरूरत का.- जॉन एलिया


सीना दहक रहा हो तो...
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई

साबित हुआ सुकून-ए-दिल-ओ-जां कहीं नहीं
रिश्तों में ढूँढता है तो ढूँढा करे कोई
तर्क-ए-तअल्लुक़ात कोई मसअला नहीं
ये तो वो रास्ता है कि बस चल पड़े कोई
दीवार जानता था जिसे मैं वो धूल थी
अब मुझ को एतिमाद की दावत न दे कोई
मैं ख़ुद ये चाहता हूं कि हालात हूं ख़राब
मेरे ख़िलाफ़ ज़हर उगलता फिरे कोई
ऐ शख़्स अब तो मुझ को सभी कुछ क़ुबूल है
ये भी क़ुबूल है कि तुझे छीन ले कोई
हां ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र
काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई

उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या...
उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या?
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या?
मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या?
बोलते क्यो नहीं मेरे अपने
आबले पड़ गये ज़बान में क्या?
मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या?
अपनी महरूमिया छुपाते है
हम गरीबो की आन-बान में क्या?
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या?
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या?
है नसीम-ए-बहार गर्दालूद
खाक उड़ती है उस मकान में क्या
ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या?
रूह प्यासी कहां से आती है...
रूह प्यासी कहां से आती है
ये उदासी कहां से आती है
दिल है शब दो का तो ऐ उम्मीद
तू निदासी कहां से आती है
शौक में ऐशे वत्ल के हन्गाम
नाशिफासी कहां से आती है
एक ज़िन्दान-ए-बेदिली और शाम
ये सबासी कहां से आती है
तू है पहलू में फिर तेरी खुशबू
होके बासी कहां से आती है

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