खुद ब खुद बहने लगी तब शब्द की गोदावरी,
एक सुखद स्पर्श पाकर गीत अनगिन हो गये,
देह तो जगती रही मन प्रान दोनों सो गये,
मुँह छिपाते ना उजाले, ना अंधेरे रीझते,
प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते.❤️
~ डॉ विष्णु सक्सेना 😍
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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