Wednesday, April 29, 2020

ना जाने इस दुनिया में ये कैसी खामौशी सी छाई है

ना जाने इस दुनिया में ये कैसी खामोशी सी छाई है
अपने ही दरवाज़े पे खड़े लगता है मानो "मैयत" सी छाई है
जिन गलियों में दिन भर बच्चों की खिल-खिलाने की आहटे थी
आज ना जाने वहां कैसी खामौशी सी छाई है
पता नहीं क्या हो रहा है दुनिया में
ना जाने कैसी ये तबाही है
ढूंढ रहा हूं खड़े अपने दरवाज़े पे वो खिल-खिलाहटे
मगर ना जाने ये कैसी खामौशी सी छाई है
कुछ यूं आसमान को देख कर खुदा से ये पुंछ रहा हूं मैं
कि गुनाह हुआ होगा किसी एक से तो सज़ा सबने क्यों पाई है
ना जाने इस दुनिया में ये कैसी खामौशी सी छाई है

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