सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
- नज़्म तबातबाई
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
- जलील मानिकपूरी
ऐसी तारीकियाँ आँखों में बसी हैं कि 'फ़राज़'
रात तो रात है हम दिन को जलाते हैं चराग़
- अहमद फ़राज़
मुद्दत के ब'अद आज मैं ऑफ़िस नहीं गया
ख़ुद अपने साथ बैठ के दिन भर शराब पी
- फ़ाज़िल जमीली
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