क्या कभी हम अपने आप से मिले थे
क्या खुशियों के इतने फूल कभी खिले थे
इक दिन पूछा मैंने अपने आप से
मुक्त देखकर हृदय को सन्ताप से
न बाहर की आपा धापी है
न ही अंदर की उदासी
बस निशि दिन भोले नाथ हैं
और है उनकी न्यारी काशी
लोग अपने घरों में हैं
परिवार उनके साथ है
आह्लाद के दो स्वर्णिम पल
हृदय में नाथों के नाथ हैं
अर्थ संपन्न शक्ति संपन्न
अणु और परमाणु संपन्न
श्रीहीन नतमस्तक हैं
असहाय और हो रहे हैं विपन्न
काल सबसे प्रबल है
फिर से मिला प्रमाण
इक सूक्ष्म अदृश्य विषाणु ने
सुला दिया सबका अभिमान
अन्न दान महा दान
सबसे बड़ा किसान है
वैश्विक संकट के समय
सहचर बना विज्ञान है
ईश्वर ने विविध रूपों में
कदाचित् लिया अवतार है
कोरोना योद्धाओं के भग्वद्रूपों को
मेरा प्रणाम बारम्बार है
संकट के बादल छटेंगे
पनपेंगी फिर नई उर्मियाँ
आशा का सूरज चमकेगा
लेकर फिर से असंख्य रश्मियाँ।
Friday, April 24, 2020
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