किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
- बशीर बद्र
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
- अहमद नदीम क़ासमी
हर मुसाफ़िर के साथ आता है
इक नया रास्ता हमेशा से
- ताजदार आदिल
हुस्न उस का उसी मक़ाम पे है
ये मुसाफ़िर सफ़र नहीं करता
- ज़फ़र इक़बाल
नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया
- मीराजी
ये आंसू ढूंढ़ता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है
- असद भोपाली
आख़िरी बस का एक मुसाफ़िर
शब-भर बैठा रह जाता है
- जानां मलिक
घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे
लोग दरवाज़ों से निकले कि मुहाजिर ठहरे
- क़ैसर-उल जाफ़री
दो क़दम चल आते उस के साथ साथ
जिस मुसाफ़िर को अकेला देखते
- जमाल एहसानी
मुसाफ़िर जा चुका लम्बे सफ़र पर
अभी तक धूप आंखें मल रही है
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया
No comments:
Post a Comment