Friday, February 14, 2025

फैज अहमद फैज शायर Faiz Ahmad Faiz Shayari

 'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग/

और भी दुख हैं जमाने में मुहब्ब्त के सिवा/

राहते और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा.'

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‘हम जीते जी मसरूफ रहे/

कुछ इश्क किया कुछ काम किया.

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लाजिम है कि हम भी देखेंगे/

वे दिन कि जिसका वादा है/

जो लौह-ए-अजल में लिक्खा है/

जब जुल्म-ओ सितम के कोह-ए-गिरां/

रूई की तरह उड़ जायेंगे…’

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‘गुलों में रंग भरे बादे नौबहार चले/

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.’

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‘अब जुल्म की मियाद के दिन थोड़े हैं/

इक जरा सब्र कि फरियाद के दिन थोड़े हैं.’

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‘ये दाग-दाग उजाला ये शब गजीदा सहर/

वे इंतिजार था जिसका ये वो सहर तो नहीं/

ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरजू लेकर/ 

चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं/ 

फलक के दश्त में आखिरी मंजिल…’

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 ‘आपकी याद आती रही रात भर/

चांदनी दिल दुखाती रही रात भर/

कोई खुशबू बदलती रही पैरहन/

कोई तस्वीर गाती रही रात भर.’ 

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‘तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते हैं/ 

किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं.’

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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

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वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे

शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने

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जानता है कि वो न आएँगे

फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल



-फैज अहमद फैज
















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