Friday, February 14, 2025

मिरे महबूब सताने के लिए आ

 दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग

तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो


वही होगा जो हुआ है जो हुआ करता हैं

मैं ने इस प्यार का अंजाम तो सोचा भी नहीं


हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता

तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो


दर्द ऐसा है कि जी बाहे है जिंदारहिए

ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है


दिल की बाज़ी लगे फिर जान की बाज़ी लग जाए

इश्क़ में हार के बैठो नहीं हारे जाओ


अब लुत्फ़ इसी में है मज्ञा है तो इसी में

आ ऐ मिरे महबूब सताने के लिए आ


दिल दर्द की भट्टी में कई बार जले है

तब एक ग़ज़ल हस्र के सांचे में ढले है


हम को तो खैर पहुंचना था जहां तक पहुँचे

जो हमें रोक रहे थे वो कहां तक पहुंचे

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