Friday, February 14, 2025

तुम्हारी पलकों का कंपना

 तुम्हारी पलकों का कंपना

तनिक-सा चमक खुलना, फिर झंपना।
तुम्हारी पलकों का कंपना।

मानो दीखा तुम्हें किसी कली के
खिलने का सपना।
तुम्हारी पलकों का कंपना।

सपने की एक किरण मुझको दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना,
और सब समय पराया है
बस उतना क्षण अपना।

तुम्हारी
पलकों का कंपना। 


अज्ञेय

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