अब नहीं है हम चिरागों के मोहताज,
उसकी आंखें महफिले रोशन करती हैं,
मै किताबें फिर से अलमारी मे रख आया हूं,
सुना है वह बा कमाल इंसान पढ़ती है।
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हर जगह बड़े मायूस से चेहरे नजर आ रहे हैं,
लगता है अब उसने सजना बंद कर दिया है।
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कुछ रास्ता लिख देगा,
कुछ मैं लिख दूंगा
वो लिखते जाएंगे मुश्किल,
मैं मंजिल लिख दूंगा।
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कितना दिल दुखाओगे बस करो
ये काला काजल लगाना बस करो
'एक बार अगर देख लीं जुल्फे खुली किसी ने,
मर जायेंगे कई, सुनो बाल बांध लो।
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मैं फरेब से फरेब कर लूं
तेरे बाद खुद को कैद कर लूं
तुझे भी इश्क था मेरी इस लिखाई से
क्या खूबी को अब मैं ऐब कर लूं?
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बिन बताये उसने क्यों ये दूरी कर दी,
बिछड़कर उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी,
मेरे मुकदर में गम आये तो क्या हुआ,
खुदा ने उसकी ख्वाहिश तो पूरी कर दी।
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आसान सा कुछ करना होता तो पहाड़ तोड़ लेते,
हम तो कमबख्त इश्क करना था।
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वो राज की तरह मेरी बातों में था,
जुगनू जैसे मेरी काली रातों में था,
किस्सा क्या सुनाऊ तुम्हें कल रात का,
सितारों की भीड़ में, वो चांद मेरे हाथों में था।
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वो मुझे दूर करने की ज़िद लिए बैठा है,
साथ चलना नहीं है मंजिल का वादा कर बैठा है,
मुझे मोहब्बत है समंदर की उन लहरों से,
और मेरा महबूब पहाड़ों को दिल दिए बैठा है।
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वो जुल्फों से दिन में रातें करती है,
उनकी आंखे ताउम्र की वादे करती है,
भरती है आहें हमारी आवाज को छूकर,
वो बस मुसकुरा के बरसा के करती है।
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सिरहाना खाली मुझे याद तेरी आ रही है,
भूख मर चुकी है, फिकर तेरी खा रही है।
--मुनव्वर फारुखी
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