आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
दुःख शोक, जब जो आ पड़े,
सो धैर्य पूर्वक सब सहो।
होगी सफलता क्यों नहीं,
कर्तव्य-पथ पर दृढ़ रहो।
- मैथिलीशरण गुप्त
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