तो अब इस गाँव से रिश्ता हमारा खत्म होता है
फिर आँखें खोल ली जायें कि सपना खत्म होता हैमुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंटों पर लरजती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा खत्म होता है
हवाएँ चुपके-चुपके कान में आ कर ये कहती हैं
परिंदों, उड़ चलो अब आबो-दाना खत्म होता है
बहुत दिन रह लिये दुनिया के सर्कस में तुम ऐ राना
चलो अब उठ लिया जाये तमाशा खत्म होता है
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए
ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी
साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा
मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी
हम बे-क़ुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं
शर्मिंदा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी
चारागरी बताए अगर कुछ इलाज है
दिल टूटने लगे हैं सदा के बग़ैर भी
ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा
लिबास-ए-ज़िंदगी फट जाएगा मैला नहीं होगा
शेयर-बाज़ार में क़ीमत उछलती गिरती रहती है
मगर ये ख़ून-ए-मुफ़्लिस है कभी महँगा नहीं होगा
तिरे एहसास की ईंटें लगी हैं इस इमारत में
हमारा घर तिरे घर से कभी ऊँचा नहीं होगा
हमारी दोस्ती के बीच ख़ुद-ग़र्ज़ी भी शामिल है
ये बे-मौसम का फल है ये बहुत मीठा नहीं होगा
पुराने शहर के लोगों में इक रस्म-ए-मुरव्वत है
हमारे पास आ जाओ कभी धोका नहीं होगा
ये ऐसी चोट है जिस को हमेशा दुखते रहना है
ये ऐसा ज़ख़्म है जो उम्र भर अच्छा नहीं होगा
मंज़िल क़रीब आते ही एक पांव कट गया,
चौड़ी हुई सड़क तो मेरा गांव कट गया।
चौड़ी हुई सड़क तो मेरा गांव कट गया।
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
माँ आज मुझ को छोड़ के गाँव चली गई
मैं आज अपने आईना-ख़ाने से कट गया
जोड़े की शान बढ़ गई महफ़िल महक उठी
लेकिन ये फूल अपने घराने से कट गया
ऐ आँसुओ तुम्हारी ज़रूरत है अब मुझे
कुछ मैल तो बदन का नहाने से कट गया
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया
वर्ना वही उजाड़ हवेली सी ज़िंदगी
तुम आ गए तो वक़्त ठिकाने से कट गया
मुनव्वर राना
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