एक दिन जब सब चले जाएँगे छोड़कर
तब मैं यहाँ इसी कुर्सी पर तुम्हारा इंतज़ार करूँगा
कई दिनों
कई महीनों
कई बरसों
नहीं जानता तुम आओगी या नहीं ..
उस बरसात की मुलाक़ात को पूरा करने आओगी तुम ?
मैंने सुना है जिनके हिस्से इंतज़ार आता है
वो वही होते हैं जो कुर्सी बन जाते हैं
फिर अर्सों बाद कोई अपना प्यार ज़ाहिर करने आएगा और बैठेगा मुझ पर चंद लम्हों की आड़ में
लोग चले जाते हैं
कुछ पूरे, कुछ अधूरे
और कुछ मेरी तरह मोहब्बत की राह देखते, दिखाते कुर्सी बन जाते हैं….
फिर होता है एक लंबा इंतज़ार…
और पसरा हुआ सन्नाटा…
जो देता है गवाही कि यहाँ खिले थे इक रोज़ इश्क़ के फूल
No comments:
Post a Comment