अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
- जाँ निसार अख़्तर
मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है
कुछ कलेजे में दर्द रहता है
याद आती हैं गर्मियाँ तेरी
दिल हमारा भी सर्द रहता है
~ तअशुक़ लखनवी
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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