एक सन्नाटा दबे पावँ गया हो जैसे,
दिल से एक खौफ सा गुजरा है बिछड़ जाने का.
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शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं,
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में.
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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से लम्हें नहीं तोड़ा करते.
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आईना देख कर तस्सली हुई,
हम को इस घर में जानता है कोई.
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गुलज़ार
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