Tuesday, July 11, 2023

गुलज़ार शायरी

एक सन्नाटा दबे पावँ गया हो जैसे,

दिल से एक खौफ सा गुजरा है बिछड़ जाने का.

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शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं,

चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में.

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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,

वक़्त की शाख से लम्हें नहीं तोड़ा करते.

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आईना देख कर तस्सली हुई,

हम को इस घर में जानता है कोई.

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गुलज़ार 

 


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