चाह नहीं मैं विश्व सुंदरी के पग में पहना जाऊं,
चाह नहीं दूल्हे के पग में रह, साली को ललचाऊँ,
चाह नहीं धनिकों के चरणों में हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं कालीन पे घूमूं, भाग्य पर इठलाऊँ.
बस निकाल कर मुझे पैर से,
उस मुँह पर देना तुम फेंक,
जिस मुँह से निकल रहे हों,
भारत विरोधी शब्द अनेक.
No comments:
Post a Comment