भला कौन है जो ज़िन्दगी भर साथ निभाता है
कोई हम से पहले तो कोई बाद में चला जाता है
दिन तो ढल जाता है रात को दर्द बढ़ जाता है
ऐसा अक्सर मोहब्बत में बिछड़ जाने में होता है
जानता हूं कि हर रात पूनम की रात नहीं होती
फिर भी न जाने तेरा क्यों ये इन्तजार रहता है
भंवर से निकलकर किनारा तो मिल जाता है
पर अश्कों की धारों से कब कौन निकल पाता है
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