Sunday, July 9, 2023

चल आ एक ऐसी नज़्म कहूँ

चल आ एक ऐसी नज़्म कहूँ

जो लफ़्ज़ कहूँ वो हो जाए 
बस अश्क कहूँ तो एक आँसू 
तेरे गोरे गाल को धो जाए 
मैं आ लिक्खूँ तू आ जाए 
मैं बैठ लिक्खूँ तू आ बैठे 
मेरे शाने पर सर रक्खे तू 
मैं नींद कहूँ तू सो जाए 
मैं काग़ज़ पर तेरे होंठ लिक्खूँ 
तेरे होंठों पर मुस्कान आए 
मैं दिल लिक्खूँ तू दिल थामे 
मैं गुम लिक्खूँ वो खो जाए 
तेरे हाथ बनाऊँ पेंसिल से 
फिर हाथ पे तेरे हाथ रखूँ 
कुछ उल्टा सीधा फ़र्ज़ करूँ 
कुछ सीधा उल्टा हो जाए 
मैं आह लिखूँ तू हाय करे 
बेचैन लिखूँ बेचैन हो तू 
फिर बेचैन का बे काटूँ 
तुझे चैन ज़रा सा हो जाए 
अभी ऐन लिखूँ तू सोचे मुझे 
फिर शीन लिखूँ तेरी नींद उड़े 
जब क़ाफ़ लिखूँ तुझे कुछ कुछ हो 
मैं इश्क़ लिखूँ तुझे हो जाए

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