Monday, July 10, 2023

बारिश शायरी

दफ्तर से मिल नहीं रही छुट्टी वरना मैं,

बारिश की एक बूँद न बेकार जाने दूँ.

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याद आई वो पहली बारिश,

जब तुझे एक नज़र देखा था.

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मैं चुप कराता हूँ हर शब उमड़ती बारिश को,

मगर ये रोज गई बात छेड़ देती है.

-गुलज़ार 

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तमाम रात नहाया था शहर बारिश में,

वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे.

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मैं कि कागज़ की एक कश्ती हूँ,

पहली बारिश ही आखिरी है मुझे.

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