Thursday, July 27, 2023

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो 

हवा ख़िलाफ़ हो मौजों पे इख़्तियार न हो 
ये कैसी ज़िद है कि दरिया किसी से पार न हो 

मैं गाँव लौट रहा हूँ बहुत दिनों के बाद 
ख़ुदा करे कि उसे मेरा इंतिज़ार न हो 

ज़रा सी बात पे घुट घुट के सुब्ह कर देना 
मिरी तरह भी कोई मेरा ग़म-गुसार न हो 

दुखी समाज में आँसू भरे ज़माने में 
उसे ये कौन बताए कि अश्क-बार न हो 

गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो 
आज कहीं तुम भी संगसार न हो 

Waseem Barelvi

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