इबारतें बदली हैं यूँ दौरे - फसाद में,
कि मिट गया अंतर सफेदो-सियाह में।
जिसके किए बुझने लगे दिल के चिराग,
रक्खा है क्या तुम ही कहो ऐसे गुनाह में।
लाजिम है बहुत कोर्ट में माना कि गवाही,
गैरत मगर बाकी कहाँ अबके गवाह में।
दीजे न यारा आजकल माँगे बिना सलाह,
थोड़ा-बहुत रक्खो वजन अपनी सलाह में।
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