Saturday, February 29, 2020
इश्क है या इबादत
Friday, February 28, 2020
जिंदगी शायरी
Thursday, February 27, 2020
ऐ ख़ुदा उतना ही दे
पर कई लोग निगाहों से उतर जाएँगे
सख़्ती थोड़ी लाज़िम है पर पत्थर होना ठीक नहीं
Wednesday, February 26, 2020
mohabbat शायरी
हम दीवानों की क्या हस्ती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
Tuesday, February 25, 2020
मुझको तेरा शबाब ले बैठा
Monday, February 24, 2020
तुझको आँसू की ज़रूरत तो पड़ेगी ज़ालिम
तेरी रूह से रूह का रिश्ता है मेरा…
दिल मिला न मिला मगर हाथ तो मिलाया कर
कोई ग़म है मुसलसल जो डुबाता चला गया
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया
Sunday, February 23, 2020
हर दर्द छुपाना पड़ता है,ग़म में भी हंसना पड़ता है
जीने के लिए इस दुनिया में,
बहुत कुछ सहना पड़ता है!!
ख़्वाहिशें मारनी पड़ती है,
ख़्वाबों को बदलना पड़ता है,
हालात बदलने की ख़ातिर,
ख़ुद को भी बदलना पड़ता है!
Saturday, February 22, 2020
मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है - 10 बड़े शायरों के 20 शेर
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है...
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है
बशीर बद्र
गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है
अहमद मुश्ताक़
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से...
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
असरार-उल-हक़ मजाज़
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है
अज्ञात
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो...
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
अर्श मलसियानी
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो...
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो
मंज़र लखनवी
फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक
कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं
अज्ञात
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे...
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं
असग़र गोंडवी
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था...
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था
अहमद ख़याल
मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही
कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था
मंसूरा अहमद
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी...
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने
मुनीर नियाज़ी
एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी
ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं
अलीमुल्लाह हाली
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं...
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
मुनव्वर राना
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
अदा जाफ़री
हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं...
साथ ना दें तो अपने बदल जाते हैं
अज्ञात
हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं,
चलों आज तन्हाई से बात करते हैं
अज्ञात
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए...
आज सोता ही तुझे छोड़ के जाना होगा
जाँ निसार अख़्तर
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
परवीन शाकिर
लहजे में उसके ज़हर है बिच्छू की तरहा
मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ मशहूर शायरियां
मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ मशहूर शायरियां
1-सारी उम्र
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने 'ग़ालिब'
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे
2- इश्क़ ने हमें
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूं तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के
3- पीने दे शराब मस्जिद में बैठकर ए ग़ालिब
या वो जगह बता जहा खुदा नहीं
4-बाद मरने के मेरे
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ, चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
5-हसरत दिल में है
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है
6-बेखुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब'
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है
7-कागज़ का लिबास
सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
अदल के तुम न हमें आस दिलाओ
क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले
8-हो चुकी ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम
कोई दिन गैर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है
आतशे-दोज़ख में, यह गर्मी कहाँ,
सोज़े-गुम्हा-ऐ-निहनी और है
बारहन उनकी देखी हैं रंजिशें,
पर कुछ अबके सिरगिरांनी और है
ग़ालिब शायरी
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले!
न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता?”
“कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते”
हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता”
“इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना”
“मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले”
“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई”
“हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है”
“दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए”
“इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने”
उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है”
“दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है”
“इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के”
“आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न मांग”
“इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं”
“हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे”
“हर एक बात पर कहते हो तुम कि तो क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगु क्या है?
रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?”