Saturday, February 29, 2020

इश्क है या इबादत

तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं... 
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं 
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं 

फ़िराक़ गोरखपुरी

दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के 
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के 
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ...
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ 
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ 
अहमद फ़राज़  


किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम 
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ 
अहमद फ़राज़ 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के... 
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के 
मिर्ज़ा ग़ालिब

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम 
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं 

इमाम बख़्श नासिख़
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता... 
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा 
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता 

वसीम बरेलवी


ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं 
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 
बशीर बद्र
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे... 
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें 
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें 
अहमद फ़राज़


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे 
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे 
वसीम बरेलवी
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है... 
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 
मिर्ज़ा ग़ालिब

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले 
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है 
अल्लामा इक़बाल
आगे आगे देखिए होता है क्या... 
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 
मिर्ज़ा ग़ालिब


राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या 
आगे आगे देखिए होता है क्या 
मीर तक़ी मीर
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं...
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम 
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती 

अकबर इलाहाबादी

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं 
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं 
अल्लामा इक़बाल
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई... 
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने 
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई 
मुज़फ़्फ़र रज़्मी


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले 

मिर्ज़ा ग़ालिब
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है...
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है 
राहत इंदौरी


इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ 
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है 
मुस्तफ़ा ज़ैदी
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ... 
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ 
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ 
अनवर शऊर

Friday, February 28, 2020

जिंदगी शायरी

"हर मुसीबत का दिया एक तबस्सुम से जवाब 
 इस तरह गर्दिश-ए-दौराँ को रुलाया मैं ने..."
               
  ~फ़ानी_बदायूँनी

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन 
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में 

~ सीमाब अकबराबादी.

समुंदरो के तूफानो में तैरना है मुझे कि मैं किनारो पें नहीं चलती 
इतनी सी बात है मेरी जिन्दगी की,किसी के इशारो पे नहीं चलती।


 बीते लम्हों को चलो फिर से पुकारा जाए
वक़्त इक साथ सनम मिलके गुज़ारा जाए

तोड़कर आज ग़लत फ़हमी की दीवारों को 
दोस्तों अपने तअल्लुक़ को सँवारा जाए

बरसाें जमी धुल काे में हटाने लगा हूं,
अरसाें के बाद अब मै लिखने लगा हूं,
वक्त काफि निकल गया है, मगर मरे नही मेरे जजबात ,
काग़ज़ के टुकड़े नही रहे मगर, ज़िंदा है मेरे अल्फ़ाज़,
जिंदगी की सच्चाई काे मै करीब से छुना चाहता हूं ..
एक अधुरे ख़्वाब काे मै अब जिना चाहता हूं 

एक शेर तो नहीं पर नज़्म है..

अबद हूँ मैं, शब्द हूँ,
आवाज़ हूँ मैं, साज़ हूँ, 
सन्नाटे की चीख हूँ,
महफ़िल की ख़ामोशी हूँ, 
कल से लेकर कल तलक, 
बस मैं हूँ, मैं हूँ और मैं हूँ।


दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ 
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ

जान दी दी हुई उसी की थी 
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब

मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का 
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा 
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा



तूफानों से लड़ते हैं , हवा के रुख बदलते हैं
हमीं वो हैं जो गिरते हैं औ गिर गिर के संभलते हैं

अपनी खुशी के लिए जीना मुझे जिंदगी फिर जिंदगी ना लगी
दे कर किसी की आंख में आंसू मुझे बंदगी फिर बंदगी ना लगी।

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा

~ गुलज़ार

अपनी मर्जी से कहां अपने सफ़र के हम हैं,
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं!!!
-निदा फ़ाज़ली

मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस 
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं! 

"मत पूछ आंखो से, आंसुओ का बूंद कितना है,
उम्र थोड़ी छोटी है, पर जिया समुंदर जितना है!"

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल 
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा 
~अहमद फ़राज़

बरसो के रत जागो की थकन खा गई मुझे 
सूरज निकल ही रहा था के नींद आ गई मुझे! 

सुनो ज़िन्दगी के किस्से सबके अलग अलग है 
मै जी रहा हूँ जिनके लिए शायद वो बेख़बर है 





Thursday, February 27, 2020

ऐ ख़ुदा उतना ही दे

ऐ ख़ुदा उतना ही दे
जितना कि मुनासिब हों
चाहे फिर वो ख़ुशी हो या ग़म हो

हो इनायतें सभी पे बराबर
क्या फर्क हो की
दुआएँं ज्यादा हो या कम हो

युहीं देखो लो ना एक बार मुड़कर
ये क्या ज़रुरी है कि
हर बार आवाज़ में भारीपन हो

क्या, तेरा चेहरा ही एक हकीक़त है
ज़रा देखो की
शायद मेरे आईना उधर हो

साक़ी इस पैमाने अब वो बात नहीं
जो उसके नाफ़ का प्याला हो
तो कुछ और बात हो !!

पर कई लोग निगाहों से उतर जाएँगे

“ये जो हालात हैं ये सब तो सुधर जाएँगे,
पर कई लोग निगाहों से उतर जाएँगे..”

मुहँ बनाना नहीं आता

गाँव की है मेरी अनपढ़ मुहब्बत 
उसको सेल्फ़ी लेनी तो आती है मुहँ बनाना नहीं आता

सख़्ती थोड़ी लाज़िम है पर पत्थर होना ठीक नहीं

सख़्ती थोड़ी लाज़िम है पर पत्थर होना ठीक नहीं,
हिन्दू, मुस्लिम ठीक है साहब कट्टर होना ठीक नहीं।

Wednesday, February 26, 2020

mohabbat शायरी

ऐ हिंदू ओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम
नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ
- लाल चन्द फ़लक


मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी
- क़ैशर शमीम

उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे
- जिगर मुरादाबादी


जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
- साहिर लुधियानवी

मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया


ये दुनिया नफ़रतों के आख़री स्टेज पे है
इलाज इस का मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं है
- चरण सिंह बशर

मैं ने सीखा है ज़माने से मोहब्बत करना
तेरा पैग़ाम-ए-मोहब्बत मिरे काम आया है
- दर्शन सिंह


जिस में न चमकते हों मोहब्बत के सितारे
वो शाम अगर है तो मिरी शाम नहीं है
- नज़ीर बनारसी

अदावत कोई पैमाना नहीं है
मोहब्बत को मोहब्बत ही से तोलो
- वक़ार मानवी


मोहब्बत दोनों जानिब से मोहब्बत
न पूछो आह कैसी ज़िंदगी है
- अंदलीब शादानी

हम दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले

आए बनकर उल्लास कभी, आँसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले

किस ओर चले? मत ये पूछो, बस चलना है इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले

दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए
छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले

हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले

हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके
हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले

अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले


Bhagwati charan Verma

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

Tuesday, February 25, 2020

मुझको तेरा शबाब ले बैठा

मुझको तेरा शबाब ले बैठा,
रंग गोरा, गुलाब ले बैठा

कितनी पी ली, कितनी बाकी है,
मुझको यही हिसाब ले बैठा

अच्छा होता सवाल न करता,
मुझको तेरा जवाब ले बैठा

फुर्सत जब भी मिली है कामों से,
तेरे मुख की किताब ले बैठा

मुझे जब भी तुम हो याद आए,
दिन दहाड़े शराब ले बैठा!

शिव कुमार बटालवी

Monday, February 24, 2020

तुझको आँसू की ज़रूरत तो पड़ेगी ज़ालिम

“तुझको आँसू की ज़रूरत तो पड़ेगी ज़ालिम,
खून से, खून के धब्बे नहीं धोए जाते...!”

तेरी रूह से रूह का रिश्ता है मेरा…

तेरी खुशी से नही गम से भी रिश्ता है मेरा,
तू ज़िंदगी का एक अनमोल हिस्सा है मेरा,
मेरी मोहब्बत सिर्फ़ लफ़ज़ो की मोहताज़ नही,
तेरी रूह से रूह का रिश्ता है मेरा…!!

दिल मिला न मिला मगर हाथ तो मिलाया कर

उदासियों का न ऐसे मजाक उड़ाया कर 
तू इतने जोर कहकहे मत लगाया कर 

मेरी बुझी हुई पोरो में जगमगाया कर 
दिल मिला न मिला मगर हाथ तो मिलाया कर 

कोई ग़म है मुसलसल जो डुबाता चला गया

इक  खुशी  है कि  जिसने उभरने नहीं  दिया
कोई ग़म है मुसलसल जो डुबाता चला गया

एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया

एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी 
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया 

Sunday, February 23, 2020

हर दर्द छुपाना पड़ता है,ग़म में भी हंसना पड़ता है

हर दर्द छुपाना पड़ता है,
ग़म में भी हंसना पड़ता है,
जीने के लिए इस दुनिया में,
बहुत कुछ सहना पड़ता है!!

ख़्वाहिशें मारनी पड़ती है,
ख़्वाबों को बदलना पड़ता है,
हालात बदलने की ख़ातिर,
ख़ुद को भी बदलना पड़ता है! 

Saturday, February 22, 2020

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है - 10 बड़े शायरों के 20 शेर

वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है... 

ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है 
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है 
बशीर बद्र

गुम रहा हूँ तिरे ख़यालों में 
तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है 
अहमद मुश्ताक़

बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से... 

छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर 
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है 
असरार-उल-हक़ मजाज़

बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से 
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है 
अज्ञात

शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो... 

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है 
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है 
अर्श मलसियानी

उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक 
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो 
मोमिन ख़ाँ मोमिन
 

लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो... 

तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो 
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो 
मंज़र लखनवी

फूल की ख़ुशबू हवा की चाप शीशे की खनक 
कौन सी शय है जो तेरी ख़ुश-बयानी में नहीं 
अज्ञात

मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे... 

तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं 
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है 
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे 
मैं ख़ुद आवाज़ हूँ मेरी कोई आवाज़ नहीं 
असग़र गोंडवी

उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था... 

ये भी एजाज़ मुझे इश्क़ ने बख़्शा था कभी 
उस की आवाज़ से मैं दीप जला सकता था 
अहमद ख़याल

मैं उस को खो के भी उस को पुकारती ही रही 
कि सारा रब्त तो आवाज़ के सफ़र का था 
मंसूरा अहमद

एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी... 

रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी 
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने 
मुनीर नियाज़ी


एक आवाज़ ने तोड़ी है ख़मोशी मेरी 
ढूँढता हूँ तो पस-ए-साहिल-ए-शब कुछ भी नहीं 
अलीमुल्लाह हाली

दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं...

बस तू मेरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता
 मुनव्वर राना

दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
 अदा जाफ़री

हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं...

दिल की आवाज़ से नग़में बदल जाते हैं,
साथ ना दें तो अपने बदल जाते हैं
अज्ञात

हर लफ्ज़ हर आवाज़ को सुनते हैं,
चलों आज तन्हाई से बात करते हैं
 अज्ञात

धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए... 

कोई आवाज़ पे आवाज़ दिए जाता है
आज सोता ही तुझे छोड़ के जाना होगा
 जाँ निसार अख़्तर

धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए 
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए 

परवीन शाकिर

लहजे में उसके ज़हर है बिच्छू की तरहा

लहजे में उसके ज़हर है बिच्छू की तरहा, 
वो मुझे आप तो कहता है मगर ‘तू’ की तरहा! 

मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ मशहूर शायरियां

मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ मशहूर शायरियां

1-सारी उम्र
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने 'ग़ालिब'
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे

2- इश्क़ ने हमें
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूं तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के

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3- पीने दे शराब मस्जिद में बैठकर ए ग़ालिब
या वो जगह बता जहा खुदा नहीं

4-बाद मरने के मेरे
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ, चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला


5-हसरत दिल में है
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है


6-बेखुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब'

फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है

7-कागज़ का लिबास

सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास
जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले
अदल के तुम न हमें आस दिलाओ
क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले

 

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8-हो चुकी ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम

कोई दिन गैर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है

आतशे-दोज़ख में, यह गर्मी कहाँ,
सोज़े-गुम्हा-ऐ-निहनी और है

बारहन उनकी देखी हैं रंजिशें,
पर कुछ अबके सिरगिरांनी और है

ग़ालिब शायरी

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, 

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले! 


न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता?”

“कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते”


हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता”

“इशरत-ए-कतरा है दरिया मैं फना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना”

“मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले”

“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई”

“हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है”

“दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए”

“इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने”


उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है”

“दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है”

“इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के”

“आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझ से मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न मांग”

“इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने गालिब,
अब कोई प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूं मैं”

“हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब,
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे”

“हर एक बात पर कहते हो तुम कि तो क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगु क्या है?
रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?”

उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी ना सकूँ,

उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी ना सकूँ,
ढूंढ़ने उसे चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ! 

Friday, February 21, 2020

आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे 
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे 
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे 

तेरे ख़त आज मैं गँगा में बहा आया हूँ 
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ! 

Wednesday, February 19, 2020

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम... 
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं...
~ इमाम बख़्श नासिख़ 

जाग के रात राख़ किया करते हैं

शायर दर्द क़लम में भरने को
दिल में सुराख़ किया करते हैं

धुआँ कर देते हैं सुलगाकर दिन 
जाग के रात राख़ किया करते हैं! 

कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

“तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर 
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे.!”

~ कैसर उल ज़ाफ़री

कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

“तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर 
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे.!”

~ कैसर उल ज़ाफ़री

कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है

कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है,
ये दीया अपने ही अँधेरे में घुट जाता है।

सब समझते हैं वही रात की किस्मत होगा,
जो सितारा बुलंदी पर नजर आता है...😊

ये जो है हुक्म मेरे पास न आये कोई

ये जो है हुक्म मेरे पास न आये कोई,
इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाये कोई।
ताक में है निगाह-ए-शौक खुदा खैर करे,
सामने से मेरे बचता हुआ जाए कोई।

दाग़ देहलवी

मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ

मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ,
किसका आँचल है जो पर्बतों पर लहराता है।

मेरी आँखों में एक बादल का टुकड़ा शायद,
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है! 

मैं तो झोंका हूँ हवाओं को उड़ा ले जाऊंगा,

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊंगा,
जागते रहना तुझे तुझसे चुरा ले जाऊंगा।
हो के कदमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा,
ख़ाक में मिलकर भी मैं खुशबू बचा ले जाऊंगा।
कौन सी शय मुझको पहुँचाएगी तेरे शहर,
ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊंगा।

डॉ. कुमार विश्वास

तमन्ना छोड़ देते हैं... इरादा छोड़ देते हैं

तमन्ना छोड़ देते हैं... इरादा छोड़ देते हैं,
चलो एक दूसरे को फिर से आधा छोड़ देते हैं।

उधर आँखों में मंज़र आज भी वैसे का वैसा है,
इधर हम भी निगाहों को तरसता छोड़ देते हैं...

हम क़ातिल को ज़िंदा छोड़ देते हैं

हमीं ने अपनी आँखों से समन्दर तक निचोड़े हैं,
हमीं अब आजकल दरिया को प्यासा छोड़ देते हैं।

हमारा क़त्ल होता है, मोहब्बत की कहानी में,
या यूँ कह लो कि हम क़ातिल को ज़िंदा छोड़ देते हैं।

हमीं शायर हैं, हम ही तो ग़ज़ल के शाहजादे हैं,
तआरुफ़ इतना देकर बाक़ी मिसरा छोड़ देते हैं...😊

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे 
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे 

तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ मुझे 
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे 

~ कैसर- उल जाफरी
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
के आस पास की लहरों को भी पता न लगे

वो फूल जो मेरे दामन से हो गये मंसूब
ख़ुदा करे उन्हें बाज़ार की हवा न लगे...

न जाने क्या है किसी की उदास आँखों में
वो मुँह छुपा के भी जाये तो बेवफ़ा न लगे

तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे

तुम आँख मूँद के पी जाओ ज़िन्दगी "क़ैसर"
के एक घूँट में शायद ये बदमज़ा न लगे...

Tuesday, February 18, 2020

दोस्त है तो नसीहत ना कर खुदा के लिए..

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए...
तू दोस्त है तो नसीहत ना कर खुदा के लिए..

सच है, विपत्ति जब आती है

सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,

शूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

~ रामधारी सिंह दिनकर 

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा.

हज़ारों साल नरगिस अपनी बे-नूरी पे रोती है. 
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा.
#AllamaIqbal

किसी को हो न सका उसके क़द का अंदाज़ा 
वो आसमान था मग़र सर झुका के चलता था !!

खूद ही को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से 
पहले खूदा बंन्दे से खुद पुछे बता तेरी रज़ा क्या है।

परिंदों को मंजिल मिलेंगी यकीनन,
यह फैले हुए उनके पर बोलते हैं !!
वोही लोग रहते है खामोश अक्सर,
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं !!


अंधेरा सारा समेट कर अपने पहलु में कर लिया,
 मियां काबिलियत तो देखिये अदने से चरागं की।

हम हैं माजरा तलब जिन की दस्ताने जुबानिया होंगी! 
तुम्हारी महफ़िल मै हम नहीं होंगे पर हमारी कहानियां होंगी! 

वो नौजवान को हौसलों की उड़ान रखते हैं
अपने कद्मों में ज़मीं आसमां ____रखते हैं
ना कर फिकर की तू है एक नन्हा सा चिराग
तेरे हौसले खुद में हज़ारों तूफ़ान रखते__ है! 



हमारी तरह करवट बदलकर सोने की आदत नहीं

मुझे चाहत कोई हुर की या परी की नहीं 
स्मित दिल पर लगा लू महोब्बत वो मेरी नहीं 

रूह को मंजिल बनाकर बदन पर घूम आउ
मुसाफ़िर हु चोर लुटेरे सी मेरी फितरत नही 

उनको नींद तो आती होंगी और क्यो न आयेगी ?
हमारी तरह करवट बदलकर सोने की आदत नहीं! 

अब निगाहें निगाहों से मिलने से पहले

अब निगाहें निगाहों से मिलने से पहले
लिबास पर जाती है रूह से मिलने से पहले।

सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं

इसी सबब से हैं शायद, अज़ाब जितने हैं
झटक के फेंक दो पलकों पे ख़्वाब जितने हैं

वतन से इश्क़, ग़रीबी से बैर, अम्न से प्यार
सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं

समझ सके तो समझ ज़िन्दगी की उलझन को
सवाल उतने नहीं है, जवाब जितने हैं

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निसार अख़्तर 

लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना.

मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना.

Monday, February 17, 2020

चलो आज फिर हम

चलो आज फिर हम
करीब होते हैं
तुम पास होते हो
तो जाने क्यों
गुनाह होते हैं
कैसी है ये
ज़माने की हवा
दिल के अरमां
बेकाबू होते हैं
खुश़्क लबों को
कंपकंपाते देखा है
ख़बर है मुझको
तेरी आगोश में
दर्द फ़ना होते हैं।

जब भी ख़्वाबों का
मंज़र गुजरेगा
तेरी सुरमई आंखों में
समुन्दर गुजरेगा
डरता हूं
डूब न जाऊं कहीं
एक दर्द-सा
ज़िगर में उतरेगा।

शाम है कुछ
भीगी-भीगी-सी
हवा है कुछ
सर्द-सर्द-सी
एक चेहरा है
घुले हुए रंगों में
एक चुभन-सी है
दिल में जरा-जरा-सी।

Sunday, February 16, 2020

क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

~ साहिर लुधियानवी

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

मंज़िल हमारी दिखती सबको हसीन सी।

लेकर नहीं पैदा हुवे हैं गुलाबों का बिस्तर।
ग़र्द-ए-सफ़र किसी को आता नहीं नज़र।।

मंज़िल हमारी दिखती सबको हसीन सी।
पांवों के छालों से वो लेकिन हैं बे-ख़बर।।

कश्मकश है ज़िंदगी में क़ौन देखेगा इसे।
सब परीशां हैं यहां नजर जाती है जिधर।।

जानते जानते जब तलक वह जानेगा मुझे।
तब तलक ग़म-ए-दौरां ही जायेगा गुज़र।।

वही सिसकन वही आहें वही ग़म वही आंसू।
लेकर दोस्त यह दिल बता दे जायें किधर।।

Saturday, February 15, 2020

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

क्या कशिश थी तुम्हारी आँखों मे

क्या कशिश थी तुम्हारी आँखों मे,
तुझको देखा और तेरा ही हो गया।

क्या कशिश थी तुम्हारी आँखों मे

क्या कशिश थी तुम्हारी आँखों मे,
तुझको देखा और तेरा ही हो गया।

अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ

अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ 
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ 

अनवर शऊर

चलो आज बिना वजह मुस्कुरा के देखते है!

सारे गमों के बंदिशों को ठुकरा के देखते है
चलो आज बिना वजह मुस्कुरा के देखते है! 

शाम से आँख में नमी सी हैआज फिर आप की कमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

~ गुलज़ार

शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है

दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर
इस की आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है! 

मैं अपने गाँव की इक शाम तेरे नाम करता हूँ.

“शहर जाकर तुझे बस रात की शोखी हुई हासिल,
मैं अपने गाँव की इक शाम तेरे नाम करता हूँ...!

मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए

कुछ कह रही हैं आप के सीने की धड़कनें
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए

~Qatil Shifayi

तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा

जहाँ में होने को ऐ दोस्त यूँ तो सब होगा
तिरे लबों पे मिरे लब हों ऐसा कब होगा

~ शहरयार

धीरे से लबों पे पिघला है यह सवाल,
तू ज़्यादा ख़ूबसूरत है या तेरा ख़्याल..!!

क्या हक़ीक़त कहूं कि क्या है इश्क़

क्या हक़ीक़त कहूं कि क्या है इश्क़
हक़-शनासों के हां ख़ुदा है इश्क़

दिल लगा हो तो जी जहां से उठा
मौत का नाम प्यार का है इश्क़

और तदबीर को नहीं कुछ दख़्ल
इश्क़ के दर्द की दवा है इश्क़

क्या डुबाया मुहीत में ग़म के
हम ने जाना था आश्ना है इश्क़

इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़

कोहकन क्या पहाड़ काटेगा
पर्दे में ज़ोर-आज़मा है इश्क़

इश्क़ है इश्क़ करने वालों को
कैसा कैसा बहम किया है इश्क़

कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुंचा
आरज़ू इश्क़ मुद्दआ है इश्क़

'मीर' मरना पड़े है ख़ूबां पर
इश्क़ मत कर कि बद बला है इश्क़

Friday, February 14, 2020

दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत

ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत 
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत 

जब न तब जागह से तुम जाया किए 
हम तो अपनी ओर से आए बहुत 

दैर से सू-ए-हरम आया न टुक 
हम मिज़ाज अपना इधर लाए बहुत

फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे 
पर हमें इन में तुम्हीं भाए बहुत 

गर बुका इस शोर से शब को है तो 
रोवेंगे सोने को हम-साए बहुत 

वो जो निकला सुब्ह जैसे आफ़्ताब 
रश्क से गुल फूल मुरझाए बहुत 

'मीर' से पूछा जो मैं आशिक़ हो तुम 
हो के कुछ चुपके से शरमाए बहुत! 

Wednesday, February 12, 2020

Diary Jan '95


कभी कभी मंदिर में जाप कर लेता हूँ मैं,
कभी मस्जिद में आ ला प कर लेता हूँ मैं!
कहीं इंसान से बढ़कर भगवान् न हो जाऊँ,
इसलिए थोड़ा सा पाप कर लेता हूँ मैं!

फलक को जहाँ जिद है बिजलियाँ गिराने की,
हमें भी वहां जिद है आशियाँ बनाने की !

इधर मेरी गर्दन पे खंजर चलेगा
उधर माथे पे बिंदिया सजेगी
मजा लेकर उनको फिर रोना पड़ेगा
जिस रोज मेरी मय्यत उठेगी ।

लोग गैरों की बात करते हैं
हमने अपनों को आजमाया है
लोग काटों से बचकर चलते हैं
हमने फूलों से ज़ख्म पाया है।

अब भी ताजा है तेरी यादें, मगर क्या करूँ
और भी गम है ज़माने में मोहब्बत के सिवा।

 खुद पर मर मिटता है परवाना जलती हुई शमाँ को देखकर,
अश्क बहता है आसमान भी तपती हुई जमीं को देखकर.

ऐ वक़्त ठहर जा, मुझे संवर लेने दे,
मेरी सजनी है उधर जरा खबर लेने दे.

जुदाई ने तेरी हर शय से बेगाना किया मुझको,
मुझे तो हर ख़ुशी रूठी हुई मालूम होती है.

तु नहीं तो जिंदगी में और क्या रह जायेगा,
दूर तलक तन्हाईयों का सिलसिला रह जायेगा.

जी चाहता है फूल सा चेहरा चूम लूँ,
काँटें है आस पास करूँ तो क्या करूँ.

Holi works in many ways that are wondrous and strange.
And there is nothing in face that the colours of holi can’t change.

Celebrate holi with rang and rangoli,
Without forgetting bhang ki goli,
Enjoy it with your humjoli,
Always speak pyar ki boli,
Never use bomb and goli,
Sing the song happy holi.

होली पर होंगी कुछ नटखट बातें,
होंगी मुस्कुराहटें और मीठी शरारतें,
ढेरों मिठाई के संग जमेगा ठंडई का रंग,
आशा है आपके जीवन में लाये नहीं उमंग.

तुझे क्या बताऊँ दिलरुबा,
मेरा क्या हाल है,
तेरी एक नज़र की बात है,
मेरी जिंदगी का सवाल है.

पत्थर के जिगर वालों गम में भी रवानी है,
खुद रास्ता बनाएगा बहता हुआ पानी है,
आँख में जो आसूँ है कौन इसका सानी है,
रुक गया तो मोती है बह गया तो पानी है/

निगाहें मिलाकर बदल जाने वाले,
मुझे तुझसे कोई शिकायत नहीं,
यह दुनिया बड़ी संगदिल है,
किसी से किसी को मोहब्बत नहीं.

मुझे सहज जो गयी मंजिल,
वो राह भी बदल गए,
तेरा राह जो हाथ में आ गया,
चिराग भी राह में जल गए.

हँसना तो बड़ी शय है रोने भी नहीं देते,
लम्हें तुम्हारी याद के कुछ ऐसे भी आते है.

मुझसे मत पूछ मेरी जेब में क्या रखा है,
नोट दस का है जो बीबी से छुपा रखा है.
चाय कल साथ पीने के लिए
स्टेनो ने प्रोग्राम बना रखा है.


करें न फिक्र तुम्हारा तो क्या करें हम,
कुछ और न मिल सका अपनी दास्ताँ के लिए.

जब शाम का सूरज ढलता है,
एक दर्द सा दिल में पलता है,
तन्हाई बड़ी तडपाती है.
एक याद किसी की आती है.

छलक कर आँख से नम कर गयी दामन को
कभी जो इतिफाक से ख़ुशी मेरे हिस्से में आई है.

वो खूबसूरत ज़माने याद आयेंगे
चाह कर भी हम तुमको न भूल पाएंगे
यादों के चिराग सदा जगमगायेंगे
जब भी इस जीवन में गम मुस्कुराएंगे.

खेलने के वास्ते अब दिल किसी का चाहिए,
उम्र ऐसी है की हमको एक प्रियतमा चाहिए.

मालूम नहीं हमको इस शहर का बासिन्दा,
किस बात पे हँसता है, किस बात पे रोता है.

मैं गीत बरसाने वाला बदल हूँ,
प्यासे नयनों में हँसता काजल हूँ.

बचपन आया मैंने उसको जीवन की आशा दे दी,
यौवन आया मैंने उसको कर्मों की अभिलाषा दे दी.

आप का दामन मिला तो गम हमारे बह गए,
खिजा में भी बहार के कुछ नज़ारे रह गए.

 डिअर, आ रही है २६ जनवरी,
अब बातें न बनाओ बड़ी बड़ी,
बर्थडे है तुम्हारे उस दिन,
कल खाने को पल पल रहे है गिन.

तुमसे है सफलता का सूरज,
तुम चंद्रमा का एहसास हो,
यूं दूर ही सही पर तुम
हमेशा दिल के पास हो,

चाँद भी तेरे दीदार को आया होगा
जब तुमने रुख से पर्दा हटाया होगा,

हजारों बहारों का जिस बुत पे शबाब आया है
उनपे पे प्यार आया तो बेशिसब आया है.

तु किसी और की जागीर है ऐ जाने ग़ज़ल,
लोग तूफ़ान उठा देंगे, मेरे साथ न चल,

तस्वीर को तुम्हारी सीने से लगाये बैठे है,
यादों में उनकी खुद को भुलाये बैठे है,

आधी रात जो जब ये दुनिया वाले, ख्वाबों में खो जाते है,
ऐसे में मोहब्बत करने वाले यादों के चिराग जलाते हैं.

चाँद से गिरा एक चाँद का टुकड़ा,
बन गया वो तेरा सुन्दर मुखड़ा.

नज़रें मिली तो वक़्त की रफ़्तार थम गयी,
नाजुक से उस पल पे सदियों का बोझ था.

हमसफ़र साथ साथ चलते है.
बेवफा रस्ते बदलतें है.

ख़ुशी जिसने खोजी वो धन लेके लौटा,
हसीं जिसने खोजी वो चमन लेके लौटा
मगर प्यार को जिसने भी खोजा
न तन लेके लौटा न मन लेके लौटा.

जब तक खून में रवानी है
तब तक जिस्म में जिंदगानी है.

तेरे शहर में जब मैं तुझको रुसवा करूँगा
दिल तो दिल है पत्थर में भी सुनाई दूंगा

फूलों सी महको कलियों सी खिलो
बाबुल के आँगन में चिड़ियों सी चहको

मेरे जीवन की सबसे हसीं गिफ्ट हो तुम,
मेरे इस छोटे से दिल में शिफ्ट हो तुम.

खुशबूओं की तरह तु महकती रहे,
बुलबुलों की तरह तु चहकती रहे
दिल की इस धड़कन से आ रही है सदा,
तु सलामत रहे बस यही है दुआ.

और हसीं हो जाओगी जब पहनोगी प्यार के गहने,
और निखर जाओगी जब हम दिल में लगेंगे रहने.

आसूं मिले दर्द मिला बेकसी मिली,
अब जाके लग रहा है मुझे जिंदगी मिली,
खोकर के मैंने खुद को पाया है तुझको,
बदले में जिंदगी के मुझे जिंदगी मिली,

जो भरा नहीं है भावों से, जिसमे बहती रसधार नहीं,
वो मनुज नहीं पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं.

उन आँखों की खुमारी क्या कहिये,
इस दिल की बेकरारी क्या कहिये.
एक नशा सा छाया है उन पर,
उनकी एक नज़र गयी है जिस पर.

कहीं का ईट कहीं का रोड़ा,
ये अब सरफिरे ने शेर छोड़ा,

बैठे है रहगुजर में दिल का दिया जलाये.
शायद वो दर्द जाने, शायद वो लौट आये,

जब उसकी चुनरी लहराए बरसात हो जाए,
जब वो जुल्फें बिखराए दिन में रात हो जाये,

मोहब्बत को दिल ऐ नायब कहते हैं,
हम आपको आदाब कहतें है.

गर मैं तेरे हुस्न का सौदाई होता,
तो तेरी यार आती, मैं न सोता
करवटे बदलता रातों को नींद खोता,
मचलता तड़पता तेरे दीदार को रोता,

जो तुम मिल जाओ जमाना छोड़ देंगे हम,
तुझे पाने को दुनिया की हर रस्म तोड़ देंगे हम,
जिसमे तुम न हो वो बहार छोड़ देंगे हम,
जिसमे तेरी शय न हो वो शीशा तोड़ देंगे हम,

नाक में है दम,
घर में है बेगम.

वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ में बिखरे शूल न हों,
नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
यदि धाराएँ प्रतिकूल न हों,

सोचा नहीं था की तुमसे दूर निकल जायेंगे कहीं,
देखा तो हर मुकाम तेरी रहगुजर में है,

बढ़ा कर दोस्ती का हाथ जो तुमने पीछे हटा लिया,
लगा जैसे सावन का बादल बिन बरसे आगे बढ़ गया,

मिस्री की डली खुशबू वाली कली
तु मुझे पहले क्यों नहीं मिली.

जिस तरह हर पत्थर चमकदार नहीं होता,
हर फूल खुशबूदार नहीं होता,
उसी तरह दोस्ती सोच समझकर करना,
हर दोस्त वफादार नहीं होता.

क्यों भर आई तुम्हारे आँखों में अभी से आंसूं,
अभी छेडी कहाँ है मैंने दास्ताँ ऐ मोहब्बत,
सुबह से शाम तक जमीन से आसमान तक
दिल के दर्पण में तु मेरा दीदार है,
सोचता हूँ किसी दिन मैं तुझसे कहूं,
तु मेरी इबादत है तु मेरा प्यार है.

राह चलते अक्सर गुमान होता है जैसे,
चुपके से कोई नज़र देख रही हो जैसे,

फिर छाई है बहार की ऋतू,
फिर वही तन्हाई है,
रजनगंधा की महक लिए
याद उन्ही की आई है,

खुदा करे तुझ पर ज़माने भर का नूर इस कदर बरसे,
तु अगर चाहे भी तो गम को उम्र भर तरसे,

हर पर ख़ुशी उनको नसीब हो ऐ मेरे खुदा,
तस्वीर जिनकी रहती है हर पल निगाहों में,
.
ऐसा महबूब मिला है मुकद्दर से मुझको,
दुनिया वाले भी जिसे देखकर जलते होंगे.

जिस दिन से है तुझको देखा, लगने लगा है ऐसा,
तुम चाँद सी लगती हो या चाँद तुम्हारे जैसा,

अमर बेला की मधुर डाल सा.
तेरा मेरा प्यार भी फलके.
चंदा की चांदनी से धुलकर,
सूरज की रौशनी सा दमके.

खुशबू की तरह आई वो तेज हवाओं में.
माँगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में.

सावंली शामों से कह दो मेरे आँगन में न उतरे
उन्हें देख के बेशख्ता मेरा महबूब याद आता है
बादलों से कह दो यूं टूट के न बरसे
ऐसे भींगे मौसम में मेरा महबूब याद आता है,

जुल्म सहके जो कुछ नहीं कहते वो लोग भी अजीब होते है,
इश्क में और कुछ नहीं मिलता,  बस सैकड़ों गम नसीब होते हैं,

हमपे दुःख का पर्वत टूटा, तो हमने दो चार कहे,
उसपे भला क्या बीते होगी, जिसने शेर हज़ार कहे,

रात के सन्नाटे में हमने क्या क्या धोके खाए हैं,
जब अपना ही दिल धड़का, हम समझे वो आये हैं.

एक मुद्दत से चिरागों की तरह जलते हैं,
इन आँखों की आग को बुझा दो कोई.


मेरा दिल रो रहा है, मेरी आँखें नम नहीं,
लोग समझते है मुझे कोई गम नहीं,

हम ज़िन्दगी में ये गुस्ताखी करेंगे एक बार,
यार पैदल चलेंगे और हम होंगे कन्धों पे सवार,

तेरे चेहरे के आगे ताजा गुलाब क्या होगा,
तु लाजबाब है खुदा की कसम तेरा जबाब क्या होगा.
दो घूट पिए है हमने जहर के , एक घूँट तु भी पिला दे,
अंगारों पे रक्खी है अपने जिंदगी, अब चाहे तो तु ही जला दे.

तेरे बगैर भी हम जी लेंगे,
ज़िन्दगी ज़हर समजकर पी लेंगे
मेरी खातिर न कभी तुम रुसवा होना,
दर्द जुदाई का हम ख़ुशी से सह लेंगे.

यार के ही बहाने चले आइये,
मेरी दुनिया बसने चले आइये,
प्यार को आजमाने चले आइये,
अपनी सूरत दिखने चले आइये,
नींद में, ख्वाब में आप हैं,
आप मुझे जगाने चले आइये,
याद में आपकी मैं रोया हूँ बहुत,
कुछ तो हसने हँसाने चले आइये.


मेरी अर्ज़ है मुझसे अब वफ़ा न करना
मेरे हक में तु अब दुआ न करना
गम के साए में तेरी, मैं जी लूँगा
मैं अपने आसूं आप ही पी लूँगा.