कमरा रंगों से भर जाया करता था
पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था
थक जाता था बादल साया करते करते
और फिर मैं बादल पे साया करता था
बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन
दरिया मुझ से जान छुड़ाया करता था!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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