हैं कभी खट्टे ये तो कभी मीठे से
दे जाते हैं इक ताजा एहसास
समेट रहे इन्हें इक जमाने से..
कभी झूठे हैं बहाने रूठने के
तो सच्चे हैं बहाने ये मनाने के
जो तू समझ सके बैचेन दिल की बात
तो सुकून मिले रूह को मेरीकि प्यासी है ये इक जमाने से!
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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