Thursday, January 16, 2020

कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में

जो वो मेरे ना रहे, 
मैं भी कब किसी का रहा, 
बिछड़ के उनसे 
सलीका न जिंदगी का रहा! 

मैँ धूंडता हुं जिसे वो वहां नहीं मिलता
नये ज़मीन नया आसमां नहीं मिलता
जो इक खुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्युं
मुझे खुद अपने कदम का निसां नही मिलता ।

बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में 
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में 

बस्ती में अपनी हिंदु मुसलमान जो बस गये
इन्सान कि शकल देखने को हम तरश गये।

पैड़ काटने वालों को ये मलूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।

- कैफी अज़मी

वो क्या गया, मेरी तनहाई भी ले गया...
रौशनी क्या छोङता, परछाई भी ले गया...
आंसू भी बहाना, अब हो गया मुश्किल,
आंखों से दिल तक की, गहराई भी ले गया।

इन्शान की ख्वाहिशो की कोई इंतेहा नही 
दो ग़ज़ ज़मीन भी चाहिए , दो ग़ज़ कफ़न के बाद ।।

इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े
हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े

कैफ़ी आज़मी

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ 
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं..।

~ कैफ़ी आज़मी

मैं ढूँढ़ता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

रास्ता भूल गया या वही मंज़िल है मेरी
कोई लाया है कि ख़ुद आया हूँ,मालूम नहीं 
कहते हैं हुस्न की नज़रें भी हसीं होती हैं 
मैं भी कुछ लाया हूँ,क्या लाया हूँ मालूम नहीं।

रास्ता भूल गया, या तू ही मंज़िल है मेरी, 
तू लाया है कि ख़ुद आया हूँ, मालूम नहीं! 
कहते हैं हुस्न की नज़रें भी हसीं होती हैं, 
मैं भी कुछ पाया हूँ, क्या पाया हूँ, मालूम नहीं!

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई 
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई 
डरता हूँ कहीं ख़ुश्क न हो जाए समुंदर 
राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई 
इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी 
यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई 

#कैफ़ी_आज़मी

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