आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कल रात कुछ जवाँ ख़्वाब, अल्फाजों से यूँ हम बिस्तर हुए वक़्त ए ताबीर,कलियों के जज़्बे, शर्मा के बर्गों में छुप गए!
ताबीर--व्याख्या जज़्बा--भावना बर्ग--पत्ता
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