बड़ी तपिश है अपने गुनाहों की ,
और सोचते हैं शहर का मौसम ख़ुशगवार नहीं होता!
दिनभर करते हैं नफरतें इंसान से ,
और कहते हैं राज़ी परवरदिगार नहीं होता!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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