आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तू मझमें पूरा सा है,फिर मैं क्यूँ तुझमें निस्फ़ हूँ, रूह बसती तुझमे है मेरी ,मैं तो बस एक जिस्म हूँ!
निस्फ़- आधा
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