आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
सामने वो हैं ज़ुल्फ़ बिखेरे कितने हसीं हैं आज अंधेरे
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