तुम मिले हो तो लगता है,
उम्र थम गई है और...
साल गुजर रहे हैं यूँ ही।
कुछ कलियाँ हैं अधखिलीं,
कोई महक बरकरार है यूँ ही।
उन बारिशों के पानी को,
कैद कर लिया था इन आँखों ने...
छलकने को है बेताब ये चश्म-ए-नम यूँ ही।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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