आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ, जैसे कोई निबाह रहा हो रक़ीब से! ~ साहिर लुधियानवी
(रक़ीब = प्रतिद्वंद्वी, प्रतिस्पर्धी Rival, Competitor)
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