आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना जरा कभी कड़ी धूप में तुमने इनसे ही पनाह माँगी थी!
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