कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुएं की तरह पर्बतों से उड़ते हैं....
ये कैंचियां हमें उड़ने से खाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं हौंसलों से उड़ते हैं!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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