आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मुक्कमल इश्क़ की तलबगार नहीं होती आँखें, थोड़ा - थोड़ा ही सही, रोज़ तेरे दीदार की चाहत करती हैं!
Post a Comment
No comments:
Post a Comment