आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रात की सिलवटों पे फैले हुए, ओस के फूल चुन भी लेता हूँ।
तुम तबस्सुम से बोल देते हो, मैं निगाहों से सुन भी लेता हूँ।
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