तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है
खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है
वो मौजूद हैं और उन की कमी है
मोहब्बत भी तन्हाई-ए-दाइमी है
चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है
अरे ओ जफ़ाओं पे चुप रहने वालो
ख़मोशी जफ़ाओं की ताईद भी है
मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है
'ख़ुमार'-ए-बला-नोश तू और तौबा
तुझे ज़ाहिदों की नज़र लग गई है
उस के दिल में जो बंद रहता है
ज़िंदगी भर वो राज़ खुलता है
मोर के पाँव में जो काँटा है
मोर के साथ-साथ नाचा है
हम बताते हैं मसअला क्या है
लोग कहते हैं शे'र अच्छा है
किस की आँखों से कौन रोता है
सिर्फ़ अल्लाह जान सकता है
मेरा कुछ माँगना गुज़ारिश है
उस का कुछ माँगना तक़ाज़ा है
देर तक नाचने नहीं देता
ज़ेहन-ओ-दिल पे जो बोझ रक्खा है
कोई चादर वफ़ा नहीं करती
वक़्त जब खींच-तान करता है
आप के भेस में अभी हम ने
आप का इंतिज़ार देखा है
अपने अपने मुग़ालते हैं मियाँ
वर्ना दुनिया में कौन किस का है
तो अब इस गाँव से रिश्ता हमारा खत्म होता है
फिर आँखें खोल ली जायें कि सपना खत्म होता हैआग के पास कभी, मोम को लाकर देखूं,
हो इजाजत तो तुम्हें, हाथ लगा कर देखूँ।
दिल का मंदिर, बड़ा वीरान नज़र आता है,
सोचता हूँ इसमें तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ।।
-राहत इंदौरी
*
राज जो कुछ हो, इशारों में बता भी देना,
हाथ जब मुझसे मिलाना दबा भी देना।
*
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नज़र में रहो,
ये सब तुम्हारे ही घर हैं, किसी भी घर में रहो।
-राहत इंडोरी
*
मिल रही हो तुम,
न खो रही हो तुम,
दिन ब दिन बेहद,
दिलचस्प हो रही हो तुम!
*
पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
हम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए
*
यूं अदाएं न बिखेरिए मौसम-ए-बहार में,
सूखे दरख़्त भी खिल उठेंगे हुस्न-ए-बयार में!
*
मौसम-ए-इश्क़ है ये जरा,
खुश्क हो जाएगा!
ना उलझा करो हम से,
वरना इश्क़ हो जाएगा!
*
तेरे इश्क़ से ही मिली है मेरे वजूद को ये शोहरत,
मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले ..!!
*
बस एक झिझक है हाल-ए-दिल सुनाने में,
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में !!
*
जागती रातो को,
सपनो का बहाना मिल जाए!
तुम जो मिल जाओ तो,
जीने का बहाना मिल जाए!
*
अच्छा खासा बैठे बैठे, गुम हो जाता हूँ,
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता, तुम हो जाता हूँ!
*
मेरे हिस्से में बस इतना गुमान रहने दे,
कि मैं हूँ तेरा मुझे अपनी जान रहने दे!
*
कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर,
तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ।
*
ज़िंदगी गमों का पुलिंदा है,
ख़ुशियाँ आज कल चुनिंदा है,
कभी याद कर लिया करो इस नाचीज़ को,
ये शख्स अभी तक ज़िंदा है!
*
लोग कहते हैं कि प्यार में नींद उड़ जाती है,
कोई हमसे इश्क़ करता, कम्बख्त नींद बहुत आती है!
*
तेरे पंखुड़िओ जैसे होठों की नमी को चुरा लूँ,
तेरी ज़ुल्फों की साए में खुद को छुपा लूँ!
तेरे बदन की खुशबू में बस अब नहा लूँ,
गर फिर भी चैन ना आये, तो ये सब दुहरा लूँ!!
*
कोई मरहम नहीं चाहिए,
ज़ख्म मिटाने के लिए।
तेरी एक झलक ही काफ़ी है,
मेरे ठीक हो जाने के लिए!
*
देख कर मेरी/मेरी आँखें,
एक फकीर कहने लगा.
पलकें तुम्हारी नाज़ुक है,
ख्वाबों का वज़न कम कीजिये!
*
खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा,
निगाहे शेर पढ़ती हैं जो लब इरशाद करते है।
मिलती जुलती मेरी ग़ज़लों से है सूरत तेरी,
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे!
*
मिलो कभी चाय पर, फिर किस्से बुनेंगे,
तुम खामोशी से कहना हम चुपके से सुनेंगे!
*
खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो भीग जाया कर।
*
काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों मे मुस्कुराया कर।।
*
वो बचपन के दिन थे,
ये जवानी की बयार।
पहले भी रुख पे तेरे तिल था,
मगर कातिल न था!
*
जब जब तेरा दीद हुआ है,
अपना तो ईद हुआ है।
जब जब तेरा दीदार हुआ है,
अपना तो त्योहार हुआ है।।
*
छेड़ आती हैं कभी लब तो कभी रूखसारों को,
तुमने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पर चढा रखा है ।
काश तू चाँद और मैं सितारा होता,
आसमान में एक आशियाना हमारा होता।
*
लोग तुम्हे दूर से देखते,
नज़दीक़ से देखने का, हक़ बस हमारा होता।।
कभी साथ बैठो, तो कहूँ कि दर्द क्या है?
अब यूँ दूर से पूछोगे, तो ख़ैरियत ही कहेंगे!
*
मेरे दिल पे हाथ रखो,
जरा सा जुनून दो।
उदास हूँ बहुत दिनों से,
मेरे दिल को सुकून दो!
*
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में.
*
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
*
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
-परवीन शाकिर
इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
बशीर बद्र
*
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
निदा फ़ाज़ली
*
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना
मिर्ज़ा ग़ालिब
*
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
*
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
बशीर बद्र
*
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
निदा फ़ाज़ली
*
बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है
हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है
अनवर शऊर
*
फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा
अल्ताफ़ हुसैन हाली
*
तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
*
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
ज़ेब ग़ौरी
*
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
*
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
साक़ी फ़ारुक़ी
*
धोका था निगाहों का मगर ख़ूब था धोका
मुझ को तिरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई
शौकत थानवी
*
हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए
जाँ निसार अख़्तर
*
अक्सर ऐसा भी मोहब्बत में हुआ करता है
कि समझ-बूझ के खा जाता है धोका कोई
मज़हर इमाम
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई
दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ ग़म
जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पेड़ पर पक गया है फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
*
गुलों
को सुनना ज़रा तुम सदाएँ
भेजी हैं
गुलों
के हाथ बहुत सी
दुआएँ भेजी हैं
सियाह
रंग चमकती हुई कनारी है
पहन
लो अच्छी लगेंगी घटाएँ भेजी हैं
*
एक
पर्वाज़ दिखाई दी है
तेरी
आवाज़ सुनाई दी है
ज़िंदगी
पर भी कोई ज़ोर
नहीं
दिल
ने हर चीज़ पराई
दी है
*
बे-सबब मुस्कुरा रहा
है चाँद
कोई
साज़िश छुपा रहा है
चाँद
जाने
किस की गली से
निकला है
झेंपा
झेंपा सा आ रहा
है चाँद
*
बीते
रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू
ग़ुंचे तलाश करती है
जब
गुज़रती है उस गली
से सबा
ख़त
के पुर्ज़े तलाश करती है
*
ख़ुशबू
जैसे लोग मिले अफ़्साने
में
एक
पुराना ख़त खोला अनजाने
में
शाम
के साए बालिश्तों से
नापे हैं
चाँद
ने कितनी देर लगा दी
आने में
*
ज़िंदगी
यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला
साथ और सफ़र तन्हा
अपने
साए से चौंक जाते
हैं
उम्र
गुज़री है इस क़दर
तन्हा
*
शाम
से आँख में नमी
सी है
आज
फिर आप की कमी
सी है
दफ़्न
कर दो हमें कि
साँस आए
नब्ज़
कुछ देर से थमी
सी है
*
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में
दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
हम इस मोड़ से उठ कर अगले मोड़ चले
उन को शायद उम्र लगेगी आने में
*
एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
*
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
*
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
*
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
*
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
*
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस आए
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
कौन पथरा गया है आँखों में
बर्फ़ पलकों पे क्यूँ जमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
आइए रास्ते अलग कर लें
ये ज़रूरत भी बाहमी सी है
*
-गुलज़ार
आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम
*
मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा
-अहमद नदीम क़ासमी
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
इस रात की तक़दीर संवर जाए तो अच्छाअगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
अहमद फ़राज़
*
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
*
हम को यारों ने याद भी न रखा
'जौन' यारों के यार थे हम तो
जौन एलिया
*
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
सुहैल अज़ीमाबादी
*
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है
रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
अज्ञात
*
दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या क्या
रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते हैं
लाला माधव राम जौहर
*
तोड़ कर आज ग़लत-फ़हमी की दीवारों को
दोस्तो अपने तअ'ल्लुक़ को सँवारा जाए
संतोष खिरवड़कर
*
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
हफ़ीज़ होशियारपुरी
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे
वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे
बशीर बद्र
(हसीं तो और हैं जहाँ में लेकिन कोई तुझ सा कहाँ,तुमने दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा❤️ही रहे.दुआ करो कि हमारे प्यार💕का पौधा सदा हरा ही रहे,उदासियों में भी ये चेहरे खिला खिला ही रहे.)
यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा
तो शुक्र कीजिए कि अब कोई गिला नहीं रहा
न हिज्र है न वस्ल है अब इस को कोई क्या कहे
कि फूल शाख़ पर तो है मगर खिला नहीं रहा
ख़ज़ाना तुम न पाए तो ग़रीब जैसे हो गए
पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा
बदल गई है ज़िंदगी बदल गए हैं लोग भी
ख़ुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा
जो दुश्मनी बख़ील से हुई तो इतनी ख़ैर है
कि ज़हर उस के पास है मगर पिला नहीं रहा
लहू में जज़्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है
कोई सवाल ज़ेहन को जो दे जला नहीं रहा
Javed Akthar
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
- मुनव्वर राना
किस से इज़हार-ए-मुद्दआ कीजे
आप मिलते नहीं हैं क्या कीजे
- जौन एलिया
तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता
लफ़्ज़ सूझा तो मुआ'नी ने बग़ावत कर दी
- अहमद नदीम क़ासमी
कुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है 'हसरत'
उन से मिल कर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना
- हसरत मोहानी
अल्फ़ाज़ कहाँ से लाऊँ छाले की टपक को समझाऊँ
इज़हार-ए-मोहब्बत करते हो एहसास-ए-मोहब्बत क्या जानो
- आले रज़ा रज़ा
लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को उस का इज़हार करना मना है
- क़तील शिफ़ाई
क्या उस से गिला कीजिए बर्बादी-ए-दिल का
हम से भी तो इज़्हार-ए-तमन्ना नहीं होता
- अहमद मुश्ताक़
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे
कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए
- इफ़्तिख़ार नसीम
दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
- जलील ’आली’
अपनी शिकायतें न सही तेरा ग़म सही
इज़हार-ए-दास्ताँ का कोई सिलसिला तो है
- जमील मलिक
कुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है 'हसरत'
उन से मिल कर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना
- हसरत मोहानी
वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हम
इज़हार-ए-इल्तिफ़ात की ज़हमत न कीजिए
- हसरत मोहानी
तुम्हारी पलकों का कंपना
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झंपना।नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल
सफ़र में भी तो सदियों की मसाफ़त चाहिए है
- फ़रहत नदीम हुमायूँ
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा.
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
-नासिर काज़मी
मोहब्बत एक दम दुख का मुदावा कर नहीं देती
ये तितली बैठती है ज़ख़्म पर आहिस्ता आहिस्ता
- अब्बास ताबिश
मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए
-शकील बदायूंनी
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी
मुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे
मुझे छोड़ दे मिरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारा-गर
ये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मिरा दर्द और बढ़ा न दे
मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शो'लों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे
वो उठे हैं ले के ख़ुम-ओ-सुबू अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तिरा जाम लेने को बज़्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे
हर पल के रिश्ते का वादा हैं तुमसे
अपनापन कुछ इतना ज्यादा हैं तुमसेहर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए
दो दिन की ज़िंदगी में हज़ारों बरस जिए
सदियों पे इख़्तियार नहीं था हमारा दोस्त
दो चार लम्हे बस में थे दो चार बस जिए
सहरा के उस तरफ़ से गए सारे कारवाँ
सुन सुन के हम तो सिर्फ़ सदा-ए-जरस जिए
होंटों में ले के रात के आँचल का इक सिरा
आँखों पे रख के चाँद के होंटों का मस जिए
महदूद हैं दुआएँ मिरे इख़्तियार में
हर साँस पुर-सुकून हो तू सौ बरस जिए
1. अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
2. बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
3. कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ
कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं
4. दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
5. हर खुशी में कोई कमी-सी है
हंसती आंखों में भी नमी-सी है
6. तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तू ने ढाला है और ढले हैं हम
7. छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूं वापस तो आ कर देखिए
8. मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा
वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूं हारा
9. दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
10. उस की आंखों में भी काजल फैल रहा है
मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूं
11. कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
12. जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
13. मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
14. तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है
15. डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
16. ऊँची इमारतों से मकाँ मेरा घिर गया
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
17. तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
18. इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे
19. ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
20. धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना
21. हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
-जावेद अख्तर
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती
इतनी खूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती
दोस्त पे करम करना और हिसाब भी रखना
कारोबार होता. है. दोस्ती नहीं होती
ख़ुद चराग बन के जल वक़्त के अँघेरे में
भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती
शायरी है सरमाया ख़ुश-नसीब लोगों का
बाँस की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
- हस्तीमल हस्ती