Friday, October 6, 2023

इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और

​            इस रास्ते के नाम लिखो एक शाम और

या इस में रौशनी का करो इंतिज़ाम और

आँधी में सिर्फ़ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे

हम से जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और

मरघट में भीड़ है या मज़ारों पे भीड़ है

अब गुल खिला रहा है तुम्हारा निज़ाम और

घुटनों पे रख के हाथ खड़े थे नमाज़ में

जा रहे थे लोग ज़ेहन में तमाम और

हम ने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी

कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और

हैराँ थे अपने अक्स पे घर के तमाम लोग

शीशा चटख़ गया तो हुआ एक काम और

उन का कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा

हम को तो मिल गया है अदब में मक़ाम और


दुष्यंत कुमार

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