Monday, October 9, 2023

तुंद प्यास थी फिर भी बुझा सका ना मैं

उसने जो चाहा वो काम कर सका ना मैं।

उसकी कसौटी पर खरा उतर सका ना मैं।।

उसने चाहा था फूलों को सजाना मुझमें।
लेकिन उसके लिए ज़र्फ़ बन सका ना मैं।।

एक मुद्दत से बैठा हूॅं समंदर के किनारे मैं।
तुंद प्यास थी फिर भी बुझा सका ना मैं।।

कई बार चाहा हाल-ए-दिल कह दूं उससे।
दिल की बात लबों पर ला सका ना मैं।।

सियाह रात में जल रहा हूं दीये की तरह।
किसी मुसाफ़िर को राह दिखा सका ना मैं।।

ज़र्फ़ : फूलदान। तुंद : प्रबल।
 

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