फकत तेरी यादें ही नही, तेरे इल्ज़ाम भी हैं।
तेरी तस्वीर मे छिपे , कुछ तेरे पैगाम भी हैं।।
मेरे कातिल,यूं अयादतमंद बनकर आये थे।
लुटेरों मे गैर ही नही, अपनों के नाम भी हैं।।
अंधेरों का सबब जानकर, तुम क्या करोगे।
तन्हा हम ही नही,ये सुबह-ओ-शाम भी हैं।।
सिर्फ फराखदिली अपनी,बस याद है तुम्हे।
मगर फहरिस्त मे, तेरे कुछ इंतकाम भी हैं।।
हर बात के लिए , क्यूं कोसते हो तुम हमे।
वक्त के साथ ही वजह, और तमाम भी हैं।।
मेरी हर तहरीर को, कभी ध्यान से पढ़ना।
मेरे उन्हीं खतों मे , तेरे लिए सलाम भी हैं।।
क्या हर अहसान का तुम्हें,बदला चाहिए।
खामोश लबों के इकरार , गुमनाम भी हैं।।
अपनी गुस्ताखियों पर, कुछ गौर करें हम।
यहां रिश्ते निभाने के, कुछ निजाम भी हैं।।
खुद्दारी-ओ-वकार तो,जरूरी है जिंदगी मे।
मगर हममें से कुछ,अहम के गुलाम भी हैं।।
शुक्रगुज़ार बने रब के,जो नवाजा है उसने।
बेशक उसके हाथ मे,सबकी लगाम भी हैं।।
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