कितने सुहाने थे दिन,
कौन ले गए वो पल छिन।
कोई लौटा दे वो बचपन,
याद करके जिसे,
फिर धड़़क जाए धड़़कन।
वो मासूमियत खो गई है कहीं,
अब तो खुद में भी खुद हैं ही नहीं।
दिखाता वो खुद को है ऐसा यहाॅं,
नाचता है वो जैसे नचाता जहां।
न जाने छोड़ आया है खुद को कहाॅं,
ढूंढता फिर रहा है यहॉं से वहाॅं।
शायद खुद से ही रूठा हुआ है,
लगता भीतर से टूटा हुआ है।
लम्बी ना यूं खुद की रातें कर,
खुद से भी जरा बातें कर।
इक बार फिर बच्चा बन,
ढूंढ ला वो बचपन,
याद कर जिसे फिर धड़क जाए धड़कन।।
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