दिनभर की थकन, रातभर तेरी याद।
आती है अब हर बात पर तेरी याद।।
अस्सी से दशाश्वमेध तक तेरी स्मृति,
काशी के हर इक घाट पर तेरी याद।
कई वर्ष दे गया कुछ दिन का कारवां,
गलियों में संजोता है शहर तेरी याद।
ज्यादा नहीं तो संभवतः आधी उमर,
लग जाए बटोरूं जो अगर तेरी याद।
गई तो साथ में तेरे शहर भी चल पड़ा,
अंतस में कर गई है यूं असर तेरी याद।
लमही सा हृदय तेरा है मुंशी की जीवनी ,
लम्हों का मकां,स्वप्नो का नगर तेरी याद।
तू तुलसी मानसा सी मैं चुनार का किला,
गोदौलिया बाजार की है नज़र तेरी याद।
हो सार तुम संसार की ओ मणिकर्णिका,
सारनाथ की राहों में रहगुजर तेरी याद।
चौसठ योगिनी सी तुम, गंगा सी हो सरल,
संकट मोचन धाम में भी अमर तेरी याद।
रौनक है दुर्गाकुंड की, लंका की दमक है,
श्री काशी विश्वनाथ में भी बसर तेरी याद।
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