Monday, October 9, 2023

धूप क्या छांव क्या अब पता ना रहा

जब से तुमने छुआ दर्द दिल का बढ़ा,

फर्क रात और दिन का ये जाता रहा।
जिस डगर पर भटक संग तुम्हारे चले
धूप क्या छांव क्या अब पता ना रहा।
जो चुभे थे पैर में कांच के वो टुकड़े थे
जाम टूटकर जब गिरा मुस्कराता रहा।
बिजलियां दिखी वहां आग लग गई यहां
गर्जनाएं मेघ की सुनकर दिल दहल गया।
जब से तुमने छुआ दर्द दिल का बढ़ा
फर्क रात और दिन का ये जाता रहा।

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