Friday, July 28, 2023

वो अँधेरे ही भले थे कि कदम राह पर थे

वो अँधेरे ही भले थे कि कदम राह पर थे,

रोशनी ले आई मुझे मंजिल से बहुत दूर।

….

​मैं पा नहीं सका इस कशमकश से छुटकारा​, तू मुझे जीत भी सकता था मगर ​हारा क्यूँ​।

…. न हाथ थाम सके और न पकड़ सके दामन, बहुत ही क़रीब से गुज़र कर बिछड़ गया कोई।

…. शिकायतें भी थी उसे तो मेरे ख़ुलूस से, अजीब था वो शख्स मेरी आदतें ना समझ सका।

…. ले लो वापस वो आँसू वो तड़प वो यादें सारी, नहीं कोई जुर्म हमारा तो फिर ये सजाएं कैसी।

Thursday, July 27, 2023

अभी तुमसे बहुत कुछ सीखना था मुझे शायद प्रेम करना भी

अभी तुमसे बहुत कुछ सीखना है मुझे,

हाँ प्रेम करना भी.

बहुत दूर तलक तुम्हारे साथ चलना है,

तुम्हारा हाथ को थामकर, 

तुम्हें साथ लेकर.

….


अभी तुमसे बहुत कुछ सीखना था मुझे

शायद प्रेम करना भी 

कुछ दूर तक तो तुम्हारे साथ चलना ही था 
पर तुमने, बस, पहला सबक बताकर 
झटके से उँगली छुड़ा ली 

अपने प्रथम प्रेम की अनगढ़ स्मृति से 
जब तुम्हारी उदास आँखों में शर्म भरी मुस्कुराहट ढरकती 
तो धरती पर एक अजोर उगता था 
वो अन्धेरे से लड़ने की बेहिसाब रसद होती थी 

एक निस्पृह अनुराग से चेहरे पर जो गहरी हरीतिमा उतरती थी 
उससे का दुनिया एक हिस्सा तो हरा हो ही सकता था 

मुझे जानने थे, मेरी जान! उन दिनों के रंग कितने चटख़ थे 
जहाँ पीड़ा का इतिहास था, पर तुम्हें हँसा देने की कूवत भी वहीं थी 
तुम्हारे सारे अनुभवों से अपना पहला प्रेम समृद्ध करना था मुझे। 

तुमसे जानना था प्रेम की उन मूलभूत जरूरतों को 
जिनके बिना एक दिन प्रेम मर जाता है। 

तुमसे सीखना था - असंग प्रेम में हंसकर विष पीना, 
नहीं तो, प्रेम ही विष बन जाता है 

अब ये है कि तुम जाने कहाँ हो तो मैंने अपने शिकायती पत्रों को फाड़ दिया और तुम्हें ढूँढ़ती हूँ 
तुमसे मिलकर बताना था कि तुमने मुझे बचा लिया मेरे मन की सबसे बड़ी त्रासदी से 
मैं तो सोचकर काँप जाती हूँ 
उस पल को, जब तुम्हारे लिए मेरा प्रेम नष्ट हो जाता, 
शायद तब जीने का मोह भी ख़त्म हो जाता । 

तुमने एक शाश्वत प्रेम को 
कालान्तर की कुरूपता से बचा लिया 
जहाँ लड़ाई की बहसें दो आत्माओं के एकान्त में उलझ जातीं 
जहाँ पीड़ा की चुप्पियाँ शोक की रुलाई के लिए तरस जातीं 

पर, पल भर तुम्हें और रुकना था ना, 
तुम्हें आँख-भर देखना था। 
जल्दबाज़ी में मैं शुक्रिया भी न कह पाई। 
और तुमने अलविदा कह दिया। 

रूपम मिश्र


कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

वो ए'तिबार दिलाए और ए'तिबार न हो 

हवा ख़िलाफ़ हो मौजों पे इख़्तियार न हो 
ये कैसी ज़िद है कि दरिया किसी से पार न हो 

मैं गाँव लौट रहा हूँ बहुत दिनों के बाद 
ख़ुदा करे कि उसे मेरा इंतिज़ार न हो 

ज़रा सी बात पे घुट घुट के सुब्ह कर देना 
मिरी तरह भी कोई मेरा ग़म-गुसार न हो 

दुखी समाज में आँसू भरे ज़माने में 
उसे ये कौन बताए कि अश्क-बार न हो 

गुनाहगारों पे उँगली उठाए देते हो 
आज कहीं तुम भी संगसार न हो 

Waseem Barelvi

अब ना मिलने आया करें

उनसे कह दो, अब ना मिलने आया करें। 

वक्त नाशाद है, दूर से ही मुस्कराया करें। 

उन्हे देखकर, धड़कती धड़कने दिल की। 
उनसे कह दो, मुझे देखकर छुपजाया करे। 

मन तो नही करता, छोड़कर जाऊँ सरहद। 
वह मुझे अपनी आखों से, न रिझाया करें। 

ऐसी आरजू उनकी, छू ले 'दोस्त' आकर। 
मेरे पहलू में बैठे, और कुछ समझाया करें। 

क्यों किया एतबार आंखों का

ख़्वाब ज़ख़्मी हुए सभी देखो ।

क्यों किया एतबार आंखों का ।। 

ढलती शाम में तेरी याद

"ढलती शाम में तेरी याद,

बैठती आकर मेरे पास; 
आँखों को करके नम, 
करती तन्हा दिल को और उदास। 

जाने किस घड़ी आ जाए ज़िन्दगी की शाम, 
और पूरी तरह छूटे तेरा मेरा साथ; 
एक बार तो आ ही जा तू, 
समझकर मेरे जज़्बात।।" 

रहा करो कभी तो, इत्मीनान से

रहा करो कभी तो, इत्मीनान से

सब कुछ नहीं मिलता जहान से 


जरूरत का सामान सब घर था 
ले आए दो चार और दुकान से 

रोज़ वही गलती रोज़ वही कल 
सीखा क्या फिर गीता पुराण से 

सब्र रखना सीखो इस धरती से 
और ठहरना उस आसमान से 

हल कितने बैठे हैं, बस चुप हैं 
राज बोला करो मीठी ज़ुबान से

तुम्हारा इंतज़ार करूँगा

एक दिन जब सब चले जाएँगे छोड़कर

तब मैं यहाँ इसी कुर्सी पर तुम्हारा इंतज़ार करूँगा 

कई दिनों 
कई महीनों 
कई बरसों 

नहीं जानता तुम आओगी या नहीं .. 
उस बरसात की मुलाक़ात को पूरा करने आओगी तुम ? 

मैंने सुना है जिनके हिस्से इंतज़ार आता है 
वो वही होते हैं जो कुर्सी बन जाते हैं 
फिर अर्सों बाद कोई अपना प्यार ज़ाहिर करने आएगा और बैठेगा मुझ पर चंद लम्हों की आड़ में 

लोग चले जाते हैं 
कुछ पूरे, कुछ अधूरे 
और कुछ मेरी तरह मोहब्बत की राह देखते, दिखाते कुर्सी बन जाते हैं…. 


फिर होता है एक लंबा इंतज़ार… 
और पसरा हुआ सन्नाटा… 
जो देता है गवाही कि यहाँ खिले थे इक रोज़ इश्क़ के फूल

अलविदा

चलो विदा हम लेते हैं, सबको अलविदा कहते हैं।

हो गयी अठखेलियाँ ख़तम अब, हम भी अपनी राह सांजेते हैं। 

चलो विदा हम लेते हैं, सबको अलविदा कहते हैं,। 
तुम्हारा यूँ बिछड़ना हमें यूँ गवारा तो नहीं, 
तुमसे दूर जाना भी कोई ये अदाकारा तो नही, 
कोन खोना चाहता है ऐसी महफिल को भला, 
लेकिन हर कोई यहाँ नाकारा तो नहीं।। 
निकल गए ये दिन भी तुमसे हंसी ठिठोली में, 
संजोये हुए लम्हों को साथ लेकर झोली में 
आयेंगे फिर से हम वही टोली में, 
सबके हिस्से का चाय का प्याला रखेंगे , 
गुजरी बातों का थोड़ा सा निवाला रखेंगे , 
अच्छा तो अपने दिल का अब हर मुद्दा हम कहते हैं,,, 
चलो विदा हम लेते हैं, सबको अलविदा कहते हैं।। 
क्या बताएं कि अब कैसे हमारी रातें कटेंगी, 
शामें रहेंगी उदास, और बस तन्हाई बटेंगी, 
अलसुबह होगी खाली खाली, एक मायूस खामोशी लौटेगी, 
वीरानीयों के आलम को आओ अब हम समेटते हैं, 
चलो विदा हम लेते हैं, सबको अलविदा कहते हैं,। 
खत्म हुआ ये समय, फिर एक और दौर लायेंगे, 
आसमां के चाँद तारे, सब तोड़ ले आयेंगे, 
ये सिर्फ़ खास रहा तो, उसको खासम खास बनाएंगे 
दुआओं में याद रखिये, खुदा हाफिज अब कहते हैं। 
चलो विदा हम लेते हैं, सबको अलविदा कहते हैं।

कमियों गलतियों की बात न कर मुझ से

कमियों गलतियों की बात न कर मुझ से, 

ढुंँढने का बोझ कभी उठाया नहीं। 

दर्द और व्यथा की चर्चा कहाँ तक करें, 

अफसोस का बोझ कभी ढोया नहीं। 
राह से पगडण्डी पगडण्डी से राह पर चलता रहा, 
काँटें और ठोकरों के भय से भटका नहीं। 
खूबियाँ के बारे में कुछ समझा नहीं, 
खूबियों की चिन्ता ने कभी पटका नहीं। 
खुशी छुपी खुशियों के संग में, 
खुशी नफरत शिकायत में मिलती नहीं । 
अल्हड़पन के गीतों पर जिंदगी सजी, 
सरगम के लहरों पर मचलना जरूर। 
जिंदगी का मचलना मचल के चहकना, 
चहकने की चाहत में शिकवे नहीं है। 
यूँ ही जीवन की धुन गुनगुनाता रहा, 
यश अपयश के खेल में उलक्षा नहीं । 
कमियों गलतियों की बात न कर मुझ से, 
ढुंँढने का बोझ कभी उठाया नहीं। 

Thursday, July 20, 2023

मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं

ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं

मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं

- आलोक श्रीवास्तव

कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें 

कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं 

- जाँ निसार अख़्तर


मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है

कुछ कलेजे में दर्द रहता है

याद आती हैं गर्मियाँ तेरी

दिल हमारा भी सर्द रहता है

~ तअशुक़ लखनवी



Thursday, July 13, 2023

क्या मोहब्बत की सदा तुम तक जाती नहीं

बहुत याद करते हैं - तुमसे दूर हो कर ।

क्या ये मेरी मोहब्बत की सदा- तुम तक जाती नहीं ।। 

मैं तन्हां हूँ, अकेला हूँ – इस भरी भिंड़ में। 
मेरे हालात कुछ ऐसे है, जानकर भी तरस खाती नहीं ।। 

मैं और तुम बस रह गए – हम बनते बनते । 
ज़रा सा इकरार और हो गया होता – तो ये दिन ऐसी आँच लाती नहीं ।। 

वो तुम थे जो मेरी अंगुलियों में – अंगुली फेरा करती थी ।
जुल्फ गिरा कर मोहब्बत की – कैद कर लिया था, अब वो सब कुछ जताती नहीं ।। 

क्या हो गया है शादी के बाद से तुम्हे, मुँह फेर लिया जैसे कि जानती न हो। 
खामोश तुम भी कहीं हो, वज़ह पूछता हूँ तो बताती नहीं ।। 

अक्सर लड़कियाँ प्यार तो कर जाती है – पर निभाती नहीं । 
डोर किसी और के बंध जाती हैं खामोशी से – अपनी उलझन जताती नहीं ।। 

बहुत याद करते हैं - तुमसे दूर हो कर । 
क्या ये मेरी मोहब्बत की सदा- तुम तक जाती नहीं ।। 

Wednesday, July 12, 2023

भला कौन है जो ज़िन्दगी भर साथ निभाता है

भला कौन है जो ज़िन्दगी भर साथ निभाता है

कोई हम से पहले तो कोई बाद में चला जाता है 

दिन तो ढल जाता है रात को दर्द बढ़ जाता है 
ऐसा अक्सर मोहब्बत में बिछड़ जाने में होता है 

जानता हूं कि हर रात पूनम की रात नहीं होती 
फिर भी न जाने तेरा क्यों ये इन्तजार रहता है 

भंवर से निकलकर किनारा तो मिल जाता है 
पर अश्कों की धारों से कब कौन निकल पाता है 

ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें

ग़म के भरोसे क्या कुछ छोड़ा क्या अब तुम से बयान करें

ग़म भी रास न आया दिल को और ही कुछ सामान करें 

करने और कहने की बातें किस ने कहीं और किस ने कीं 
करते कहते देखें किसी को हम भी कोई पैमान करें 

भली बुरी जैसी भी गुज़री उन के सहारे गुज़री है 
हज़रत-ए-दिल जब हाथ बढ़ाएँ हर मुश्किल आसान करें 

एक ठिकाना आगे आगे पीछे एक मुसाफ़िर है 
चलते चलते साँस जो टूटे मंज़िल का एलान करें 

'मीर' मिले थे 'मीरा-जी' से बातों से हम जान गए 
फ़ैज़ का चश्मा जारी है हिफ़्ज़ उन का भी दीवान करें 

मीराजी

Tuesday, July 11, 2023

गुलज़ार शायरी

एक सन्नाटा दबे पावँ गया हो जैसे,

दिल से एक खौफ सा गुजरा है बिछड़ जाने का.

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शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं,

चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में.

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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,

वक़्त की शाख से लम्हें नहीं तोड़ा करते.

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आईना देख कर तस्सली हुई,

हम को इस घर में जानता है कोई.

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गुलज़ार 

 


ज़िन्दगी भर तुझसे प्यार करें

जरा सा कभी भूलने की कसम खाया करो,

याद रखने का तो इक्का आदत बनाया करो.

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तेरे इश्क़ में दिल हैतेरे लिए जान है,

वर्ना ऐसी कदर तो किसी चीज की नहीं है.

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जरा ढूंढ़ तू उसेवो बेपनाह आसमान का रंग है,

मगर तू मेरे ख्वाबों में छिपा हुआ एक तारा है.

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उम्र भर तेरी चाहत में गुजारी हमने,

कैसे कहें उसे कि हम ज़िन्दगी भर तुझसे प्यार करें.

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अच्छा लगा है कब कोई तुम्हें छोड़कर चला जाता है,

कम्बख्त याद अच्छी आती हैअच्छी आती है.

तुम मेरे पास होते हो

तुम मेरे पास होते हो,

गोया जब कोई दूसरा नहीं होता.

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बारे दुनिया में रहो गम-जदा या शाद रहो,

ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो.

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उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और,

हम भी सर झुकाये हुए चुपचाप गुजर जाते है.

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हमारी तरफ अब वो कम देखते हैं,

वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं.

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सावन एक महीनेआँसू जीवन भर,

इन आँखों के आगे बादल बेऔकात लगे.

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देखना मुड़ मुड़ के वो उसी की तरफ,

किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं.

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कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए,

तुम्हारे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाए.

Monday, July 10, 2023

उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे

उम्र भर उस ने इसी तरह लुभाया है मुझे

वो जो इस दश्त के उस पार से लाया है मुझे 

कितने आईनों में इक अक्स दिखाया है मुझे 
ज़िंदगी ने जो अकेला कभी पाया है मुझे 

तू मिरा कुफ़्र भी है तू मिरा ईमान भी है 
तू ने लूटा है मुझे तू ने बसाया है मुझे 

मैं तुझे याद भी करता हूँ तो जल उठता हूँ 
तू ने किस दर्द के सहरा में गँवाया है मुझे 

तू वो मोती कि समुंदर में भी शो'ला-ज़न था 
मैं वो आँसू कि सर-ए-ख़ाक गिराया है मुझे 

इतनी ख़ामोश है शब लोग डरे जाते हैं 
और मैं सोचता हूँ किस ने बुलाया है मुझे 

मेरी पहचान तो मुश्किल थी मगर यारों ने 
ज़ख़्म अपने जो कुरेदे हैं तो पाया है मुझे 

वाइज़-ए-शहर के नारों से तो क्या खुलती आँख 
ख़ुद मिरे ख़्वाब की हैबत ने जगाया है मुझे 

ऐ ख़ुदा अब तिरे फ़िरदौस पे मेरा हक़ है 
तू ने इस दौर के दोज़ख़ में जलाया है मुझे 

आपकी ममता, प्यार और गोदी

भंवर से निकल कर एक किनारा मिला है,

जीने को फिर एक सहारा मिला है.

बहुत कशमकश में थी ये जिंदगी,

अब इस जिंदगी में साथ तुम्हारा मिला है.

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होंगी लाखों महफ़िलें दुनिया में,

मगर तेरे दीदार जैसा सुकून कहीं और नहीं.

--

मीठी मीठी यादें पलकों पे सजा लेना,

एक साथ गुजारे पल को दिल में बसा लेना.

नजर न आऊँ हकीकत में अगर,

मुस्कुरा कर मुझे सपनों में बुला लेना.

--

दीवाना हूँ तेरा मुझे इंकार तो नहीं,

कैसे मैं कह दूँ मुझे प्यार नहीं.

कुछ शरारत तो तेरी निगाहों की भी नहीं,

मैं अकेला इसका गुनहगार तो नहीं.

--

आपकी हर हसीं और हर आँसू,

मेरी जिंदगी के हैं एक रंगीन तारे.

आपकी ममताप्यार और गोदी,

हर गम को हल्का कर देते सारे.


जूते की अभिलाषा

चाह नहीं मैं विश्व सुंदरी के पग में पहना जाऊं,

चाह नहीं दूल्हे के पग में रहसाली को ललचाऊँ,

चाह नहीं धनिकों के चरणों में हे हरि डाला जाऊँ,

चाह नहीं कालीन पे घूमूंभाग्य पर इठलाऊँ.

बस निकाल कर मुझे पैर से,

उस मुँह पर देना तुम फेंक,

जिस मुँह से निकल रहे हों,

भारत विरोधी शब्द अनेक.

बारिश शायरी

दफ्तर से मिल नहीं रही छुट्टी वरना मैं,

बारिश की एक बूँद न बेकार जाने दूँ.

--

याद आई वो पहली बारिश,

जब तुझे एक नज़र देखा था.

--

मैं चुप कराता हूँ हर शब उमड़ती बारिश को,

मगर ये रोज गई बात छेड़ देती है.

-गुलज़ार 

--

तमाम रात नहाया था शहर बारिश में,

वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे.

--

मैं कि कागज़ की एक कश्ती हूँ,

पहली बारिश ही आखिरी है मुझे.

Sunday, July 9, 2023

अब तुम्हें हमारी चाहत की जरूरत नहीं

तुम्हारे चाहने वाले बहुत हैं

अब तुम्हें हमारी चाहत की जरूरत नहीं 

तुम्हें संभालने वाले बहुत हैं 
अब तुम्हें हमारी हौसले की जरूरत नहीं 

तुम्हारे दर्द बाटने वाले बहुत हैं 
अब तुम्हें हमारी बाहों की गरमाहट की जरूरत नहीं 

तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान लाने वाले बहुत हैं 
अब तुम्हें हमारी प्यार भरी बातों की जरूरत नहीं 

तुम्हारे चोट पर मरहम लगाने वाले बहुत हैं 
अब तुम्हें प्यार से सहलाने के लिए 
हमारी हाथों की जरूरत नहीं 

तुम्हें अपनी अदाओं से अपना बनाने वाले बहुत हैं 
अब तुम्हें हमारी सादगी की जरूरत नहीं 

हम नहीं है तेरे हाथों की लकीरों में

जिनके चेहरे को

दिल में बसा के रखे हैं 

वो कहते हैं 
हम नहीं है तेरे 
हाथों की लकीरों में। 

अगर मान भी लें 
इस बात को 
धड़कने कैसे चलना 
सीखेगी उनके बिना 
अकेले में। 

दिन कैसे भी कट जाएंगे 
लेकिन रातों में 
तू आ ही जाना कसम से रे 
लेकिन रातों 
में तू आ ही जाना कसम से रे। 

नजरे तरसती है 
तेरे दीदार को 
पूछते हैं लोग मुझसे 
गिरती बारिश में 
क्यों भरी है आंखें 
जैसे झील हो वहां पै 

कैसा ,कैसा तुम्हें लगता है 
तारों के टूटने पर भी 
क्या आसमान रोता है 

चांदनी रातों में 
चांदनी रातों में 
क्या तुमने कभी 
अंधेरों का एहसास 
किया है 
ठुकराया हुआ मेरा दिल 
जब भी दर्द में होता है 
हर बार तुझे माफ करना 
चाहता है 
ठुकराया हुआ मेरा दिल 
जब भी दर्द में होता है 
हर बार तुझे माफ करना 
चाहता है । 

जिनके चेहरे को 
दिल में बसा के रखे हैं 

वो कहते हैं 
हम नहीं है तेरे 
हाथों की लकीरों में।

इबारतें बदली हैं यूँ दौरे - फसाद में

इबारतें बदली हैं यूँ दौरे - फसाद में,

कि मिट गया अंतर सफेदो-सियाह में। 

जिसके किए बुझने लगे दिल के चिराग, 
रक्खा है क्या तुम ही कहो ऐसे गुनाह में। 

लाजिम है बहुत कोर्ट में माना कि गवाही, 
गैरत मगर बाकी कहाँ अबके गवाह में। 

दीजे न यारा आजकल माँगे बिना सलाह, 
थोड़ा-बहुत रक्खो वजन अपनी सलाह में। 

कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ

कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ

बढ़ रहा है क़ल्ब का इख़्तिलाज क्या करूँ 

क्या करूँ कोई नहीं एहतियाज दोस्त को 
और मुझ को दोस्त की एहतियाज क्या करूँ 

अब वो फ़िक्रमंद हैं कह दिया तबीब ने 
इश्क़ है जुनूँ नहीं मैं इलाज क्या करूँ 

ग़ैरत-ए-रक़ीब का शिकवा कर रहे हो तुम 
इस मुआमले में सख़्त है मिज़ाज क्या करूँ 

मा-सिवा-ए-आशिक़ी और कुछ किया भी हो 
सूझता ही कुछ नहीं काम-काज क्या करूँ 

महव-ए-कार-ए-दीं हूँ मैं बोरिया-नशीं हूँ मैं 
राहज़न नहीं हूँ मैं तख़्त-ओ-ताज क्या करूँ 

ज़ोर और ज़र बग़ैर इश्क़ क्या करूँ 'हफ़ीज़' 
चल गया है मुल्क में ये रिवाज क्या करूँ 


हफ़ीज़ जालंधरी 

बे-तकल्लुफ़ आइए कमरे में तन्हाई तो है

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है 

घुंघरूओं की जानिब-ए-दर कुछ सदा आई तो है 

इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है 
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है 

आप के सर की क़सम मेरे सिवा कोई नहीं 
बे-तकल्लुफ़ आइए कमरे में तन्हाई तो है 

जब कहा मैं ने तड़पता है बहुत अब दिल मिरा 
हंस के फ़रमाया तड़पता होगा सौदाई तो है 

देखिए होती है कब राही सू-ए-मुल्क-ए-अदम 
ख़ाना-ए-तन से हमारी रूह घबराई तो है 

दिल धड़कता है मिरा लूँ बोसा-ए-रुख़ या न लूँ 
नींद में उस ने दुलाई मुँह से सरकाई तो है 


देखिए लब तक नहीं आती गुल-ए-आरिज़ की याद 
सैर-ए-गुलशन से तबीअ'त हम ने बहलाई तो है 

मैं बला में क्यूँ फँसूँ दीवाना बन कर उस के साथ 
दिल को वहशत हो तो हो कम्बख़्त सौदाई तो है 

ख़ाक में दिल को मिलाया जल्वा-ए-रफ़्तार से 
क्यूँ न हो ऐ नौजवाँ इक शान-ए-रानाई तो है 

यूँ मुरव्वत से तुम्हारे सामने चुप हो रहें 
कल के जलसों की मगर हम ने ख़बर पाई तो है 

बादा-ए-गुल-रंग का साग़र इनायत कर मुझे 
साक़िया ताख़ीर क्या है अब घटा छाई तो है 

जिस की उल्फ़त पर बड़ा दावा था कल 'अकबर' तुम्हें 
आज हम जा कर उसे देख आए हरजाई तो है

अकबर इलाहाबादी

सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें




सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें


कभी सोहबतें कभी फ़ुर्क़तें कभी दूरियाँ कभी क़ुर्बतें 

ये सुख़न जो हम ने रक़म किए ये हैं सब वरक़ तिरी याद के 
कोई लम्हा सुब्ह-ए-विसाल का कोई शाम-ए-हिज्र की मुद्दतें 

जो तुम्हारी मान लें नासेहा तो रहेगा दामन-ए-दिल में क्या 
न किसी अदू की अदावतें न किसी सनम की मुरव्वतें 

चलो आओ तुम को दिखाएँ हम जो बचा है मक़्तल-ए-शहर में 
ये मज़ार अहल-ए-सफ़ा के हैं ये हैं अहल-ए-सिद्क़ की तुर्बतें 

मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने 
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें 



फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा

मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा 

तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा 
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा 

न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो 
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा 

मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ 
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा 

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है 
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
Bashir बद्र 

बहुत देर की मेहरबाँ आते आते

फिरे राह से वो यहाँ आते आते 

अजल मर रही तू कहाँ आते आते 

न जाना कि दुनिया से जाता है कोई 
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते 

सुना है कि आता है सर नामा-बर का 
कहाँ रह गया अरमुग़ाँ आते आते 

यक़ीं है कि हो जाए आख़िर को सच्ची 
मिरे मुँह में तेरी ज़बाँ आते आते 

सुनाने के क़ाबिल जो थी बात उन को 
वही रह गई दरमियाँ आते आते 

मुझे याद करने से ये मुद्दआ था 
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते 

अभी सिन ही क्या है जो बेबाकियाँ हों 
उन्हें आएँगी शोख़ियाँ आते आते 

कलेजा मिरे मुँह को आएगा इक दिन 
यूँही लब पर आह-ओ-फ़ुग़ाँ आते आते 

चले आते हैं दिल में अरमान लाखों 
मकाँ भर गया मेहमाँ आते आते 

नतीजा न निकला थके सब पयामी 
वहाँ जाते जाते यहाँ आते आते 

तुम्हारा ही मुश्ताक़-ए-दीदार होगा 
गया जान से इक जवाँ आते आते 

तिरी आँख फिरते ही कैसा फिरा है 
मिरी राह पर आसमाँ आते आते 

पड़ा है बड़ा पेच फिर दिल-लगी में 
तबीअत रुकी है जहाँ आते आते 

मिरे आशियाँ के तो थे चार तिनके 
चमन उड़ गया आँधियाँ आते आते 

किसी ने कुछ उन को उभारा तो होता 
न आते न आते यहाँ आते आते 

क़यामत भी आती थी हमराह उस के 
मगर रह गई हम-इनाँ आते आते 

बना है हमेशा ये दिल बाग़ ओ सहरा 
बहार आते आते ख़िज़ाँ आते आते 

नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो 
कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते