मेरी फ़ुर्सत शिकायत कर रही है,
बहुत मसरूफ़ होते जा रहे हो!
मुझे तो कॉल भी करते नहीं तुम,
किसी को फूल तक भिजवा रहे हो!
उन्हें कबसे यही समझा रहा हूँ,
मुझे बेकार में समझा रहे हो!
Aks Samastipuri
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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