उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र ले कंपित कर में,
मधु-भिक्षा की रटन अधर में,
इस अनजाने निकट नगर में,
आ पहुँचा था एक अकिंचन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
लोगों की आँखें ललचाईं,
स्वयं माँगने को कुछ आईं।
मधु सरिता उफनी अकुलाईं,
देने को अपना संचित धन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
फूलों ने पँखुरियाँ खोलीं,
आँखें करने लगीं ठिठोली;
हृदय ने न सम्हाली झोली,
लुटने लगे विकल पागल मन।
उस दिन जब जीवन के पथ में,
छिन्न पात्र में था भर आता—
वह रस बरबस था न समाता;
स्वयं चकित-सा समझ न पाता
कहाँ छिपा था, ऐसा मधुबन!
उस दिन जब जीवन के पथ में,
मधु-मंगल की वर्षा होती,
काँटों ने भी पहना मोती,
जिसे बटोर रही थी रोती—
आशा, समझ मिला अपना धन।
Jaishankar Prasad
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