Monday, February 13, 2023

प्रेम पर 10 दोहे

सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग। 
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥ 
- कबीर

अर्थ: सद्गुरु ने मुझ पर प्रसन्न होकर एक रसपूर्ण वार्ता सुनाई जिससे प्रेम रस की वर्षा हुई और मेरे अंग-प्रत्यंग उस रस से भीग गए।
सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग। 
बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥ 
- कबीर

अर्थ: सद्गुरु ने मुझ पर प्रसन्न होकर एक रसपूर्ण वार्ता सुनाई जिससे प्रेम रस की वर्षा हुई और मेरे अंग-प्रत्यंग उस रस से भीग गए।
 

गंगा जमुना सुरसती, सात सिंधु भरपूर। 
‘तुलसी’ चातक के मते, बिन स्वाती सब धूर॥ 
- तुलसीदास

अर्थ: गंगा, यमुना, सरस्वती और सातों समुद्र ये सब जल से भले ही भरे हुए हों, पर पपीहे के लिए तो स्वाति नक्षत्र के बिना ये सब धूल के समान ही हैं। क्योंकि पपीहा सिर्फ स्वाति नक्षत्र में बरसा हुआ जल ही पीता है। भाव यह है कि सच्चे प्रेमी अपनी प्रिय वस्तु के बिना अन्य किसी वस्तु को कभी नहीं चाहता, चाहे वह वस्तु कितनी ही मूल्यवान क्यों न हो।

रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय। 
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥ 
- रैदास

अर्थ: रैदास कहते हैं कि प्रेम कोशिश करने पर भी छिप नहीं पाता, वह जाहिर हो ही जाता है। प्रेम का बखान वाणी द्वारा नहीं हो सकता। प्रेम को तो आँखों से निकले हुए आँसू ही व्यक्त करते हैं।

जे सुलगे ते बुझि गए, बुझे ते सुलगे नाहिं। 
रहिमन दाहे प्रेम के, बुझि बुझि कै सुलगाहिं॥ 
- रहीम

अर्थ: रहीम कहते हैं कि आग से जलकर लकड़ी सुलग-सुलगकर बुझ जाती है, बुझकर वह फिर सुलगती नहीं। लेकिन प्रेम की आग में जलने के बाद प्रेमी बुझकर भी सुलगते रहते हैं।
 

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। 
एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ 
-कबीर

अर्थ: सारे संसारिक लोग पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मर गए कोई भी पंडित (वास्तविक ज्ञान धारण करने वाला) नहीं हो सका। लेकिन जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (या प्रेम का एक अक्षर पढ़ता है) वही सच्चा ज्ञानी होता है। वही परम तत्त्व का सच्चा पारखी होता है।

तो पर वारौं उरबसी, सुनि, राधिके सुजान। 
तू मोहन कैं उर बसी ह्वै उरबसी-समान॥ 
- बिहारी

अर्थ: कृष्ण कहते हैं कि हे सुजान राधिके, तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे रूप-सौंदर्य पर उर्वशी जैसी नारी को भी न्यौछावर कर सकता हूँ। कारण यह है कि तुम तो मेरे हृदय में उसी प्रकार निवास करती हो, जिस प्रकार उर्वशी नामक आभूषण हृदय में निवास करता है।
 

जमला लट्टू काठ का, रंग दिया करतार। 
डोरी बाँधी प्रेम की, घूम रह्या संसार॥ 
- जमाल 

अर्थ: विधाता ने काठ के लट्टू को रंगकर प्रेम की डोरी से बांधकर उसे फिरा दिया और वह संसार में चल रहा है। अभिप्राय यह है कि पंचतत्त्व का यह मनुष्य शरीर विधाता ने रचा और सजाकर उसे जन्म दिया। यह शरीर संसार में अपने अस्तित्व को केवल प्रेम के ही कारण स्थिर रख रहा है।


प्रेम दिवाने जो भये, मन भयो चकना चूर। 
छके रहे घूमत रहैं, सहजो देखि हज़ूर॥ 
- सहजोबाई

अर्थ: सहजोबाई कहती हैं कि जो व्यक्ति ईश्वरीय-प्रेम के दीवाने हो जाते हैं, उनके मन की सांसारिक वासनाएँ-कामनाएँ एकदम चूर-चूर हो जाती हैं। ऐसे लोग सदा आनंद से तृप्त रहते हैं और संसार में घूमते हुए परमात्मा का साक्षात्कार कर लेते हैं।
 

कहि रहीम इक दीप तें, प्रगट सबै दुति होय। 
तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरु दोय॥ 
- रहीम

अर्थ: रहीम कहते हैं कि जब एक ही दीपक के प्रकाश से घर में रखी सारी वस्तुएँ स्पष्ट दीखने लगती हैं, तो फिर नेत्र रूपी दो-दो दीपकों के होते तन-मन में बसे स्नेह-भाव को कोई कैसे भीतर छिपाकर रख सकता है! अर्थात मन में छिपे प्रेम-भाव को नेत्रों के द्वारा व्यक्त किया जाता है और नेत्रों से ही उसकी अभिव्यक्ति हो जाती है।

ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। 
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भए एक रंग॥ 
- अमीर ख़ुसरो

अर्थ: ख़ुसरो कहते हैं कि उसके सौभाग्य की रात्रि बहुत अच्छी तरह से बीत गई, उसमें परमात्मा प्रियतम के साथ जीवात्मा की पूर्ण आनंद की स्थिति रही। वह आनंद की अद्वैतमयी स्थिति ऐसी थी कि तन तो जीवात्मा का था और मन प्रियतम का था, परंतु सौभाग्य की रात्रि में दोनों मिलकर एक हो गए, अर्थात दोनों में कोई भेद नहीं रहा और द्वैत की स्थिति नहीं रही।

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