Wednesday, February 22, 2023

आस का इक दिया मैं जलाता रहा

साथ जितना मिला हमको कम ही रहा
प्यास जैसी थी वैसी बनी रह गयी

दोपहर की सुलगती हुई धूप में
हमने फेरे लगाये थे कितने यहाँ
जानते हैं  ये पत्थर पड़े राह के
हमने मोती गिराये थे कितने यहाँ
ख़्वाब था एक वो ख़्वाब ही रह गया
और जीने को बस ज़िंदगी रह गयी

था भरोसा मुझे तुम मिलोगी कभी
आस का इक दिया मैं जलाता रहा
आँख सावन हुई याद जब- जब किया
प्यास मन की मैं ऐसे बुझाता रहा
एक फ़साना मेरा अनकहा रह गया
एक कहानी मेरी अनसुनी रह गयी
 

अब समय आ गया है विदाई का तो
याद फिर आ गयी हैं वो बातें सभी
देख लेना कभी हम मिलेंगे नहीं
ये कसम खाई थी हमने झूठी कभी
इक महल बनने से पहले ही ढह गया
नींव बस हाशिये पर पड़ी रह गयी


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