साथ जितना मिला हमको कम ही रहा
प्यास जैसी थी वैसी बनी रह गयी
दोपहर की सुलगती हुई धूप में
हमने फेरे लगाये थे कितने यहाँ
जानते हैं ये पत्थर पड़े राह के
हमने मोती गिराये थे कितने यहाँ
ख़्वाब था एक वो ख़्वाब ही रह गया
और जीने को बस ज़िंदगी रह गयी
था भरोसा मुझे तुम मिलोगी कभी
आस का इक दिया मैं जलाता रहा
आँख सावन हुई याद जब- जब किया
प्यास मन की मैं ऐसे बुझाता रहा
एक फ़साना मेरा अनकहा रह गया
एक कहानी मेरी अनसुनी रह गयी
अब समय आ गया है विदाई का तो
याद फिर आ गयी हैं वो बातें सभी
देख लेना कभी हम मिलेंगे नहीं
ये कसम खाई थी हमने झूठी कभी
इक महल बनने से पहले ही ढह गया
नींव बस हाशिये पर पड़ी रह गयी
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